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सरस्वती
[भाग ३८
अपनी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मैं यह राय जाहिर कर रहा है। मुझे यह सुनकर बड़ी हसी आई कि वर्तमान प्रदर्शनी का नकशा
आस्ट्रेलिया के एक गृहनिमाणविद्या के विशेषज्ञ ने तैयार किया था। यह प्रदर्शनी भारतीय उद्योगों की उन्नति का प्रदशन करने के लिए की गई है और इसका नक्शा तैयार करना एक ग्रान्टेलिया के निवासी के सुपुर्द किया गया ! प्रदशनी के ऊपर यह क्या
ही अच्छी टीका-टिप्पणी है ! रात में लिया गया प्रदर्शनी के भीतर का एक चित्र ।।
अस्तु. यह एक छोटी
सी बात है। इने यहीं खत्म प्रवेश-शुल्क-द्वारा जितनी ग्रामदनी की ग्राशा की जाती कर देना चाहिए। प्रदर्शनी में जो चीज़ पाई है उनका थी, उतनी प्रदर्शनी के समाप्त होने तक हो सकेगी या नहीं, ज़िक्र अधिक महत्त्वपूर्ण है। दोनों प्रदर्शनियाँ में देग्य चुका यह मुझे नहीं मालूम । प्रदर्शनी एक बड़े विस्तृत क्षेत्र में है और दोनों के सम्बन्ध में मेरी राय भी स्पष्ट है । केवल फैली हुई है और उसकी चीज़ दूर दूर पर विग्दरी हुई है, प्रदर्शनी के लिहाज़ से वर्तमान प्रदर्शनी निश्चित रूप से जिसके कारण किसी भी दर्शक को असुविधा हो सकती है। इलाहाबाद की प्रदर्शनी से घट कर है। किन्तु भारतीय मुझे तो यह अनुभव होता था कि प्रदर्शनी की चीज़ उद्योग-धन्धों की प्रदर्शनी के लिहाज़ से वह इलाहाबाद न दिखाई देकर केवल उसका क्षेत्र ही दिखाई दे रहा है। की प्रदर्शनी से अच्छी है । इसका कारण बिलकुल सीधाप्रदर्शनी में इतना ज्यादा पैदल चलना पड़ता है कि मज़बूत मादा है। गत २६ वर्षों में भारतीय उद्योगों ने भाग से मज़बूत श्रादमी भी थक जाय । प्रदशनी के प्रत्येक उन्नति की है और भारतीय व्यवसायियों के पास अब २५ विभाग का दर्शन करने के लिए जितने समय की आव- वर्ष पहले से अधिक चीज़ प्रदर्शन करने के लिए हो गई श्यकता है और जितनी बार प्रदर्शनी में जाने की है। दूसरा कारण यह है कि वर्तमान प्रदर्शनी के अधिकाअावश्यकता पड़ती है, साधारण मनुष्य उतनी बार न तो रियों ने इलाहाबाद की प्रदर्शनी के अधिकारियों की जा ही सकता है और न उतना समय ही निकाल सकता है। अपेक्षा भारतीय उद्योगों की उन्नति के प्रदशन को ज्यादा
यह स्वाभाविक ही है कि हृदय में इस प्रदर्शनी का महत्त्व दिया है । वर्तमान प्रदर्शनी में एक और महत्वपूर्ण गत सरकारी प्रदर्शनी से मुकाबिला करने का विचार उत्पन्न बात है । इसमें इस बात के प्रदर्शन की व्यवस्था की गई होता है । कम से कम एक बात में सन् १९५० को इलाहा- है कि प्रौद्योगिक चीज़ कैसे तैयार की जाती है, और इस बाद की प्रदर्शनी लखनऊ की प्रदर्शनी से अच्छी थी। सम्बन्ध में वर्तमान प्रदर्शनी के सामने इलाहाबाद की उस प्रदर्शनी के भवन-निर्माण में ज्यादा समझदारी से प्रदर्शनी कोई चीज़ न थी। दर्शकों के शिक्षार्थ प्रदर्शन काम लिया गया था। मेरा यह विचार है कि इस सम्बन्ध किया जाना इस प्रदर्शनी का मुख्य अंग है । जिन लोगों में दो सम्मतियाँ नहीं हो सकतीं। दानों प्रदर्शनियों की का प्रदर्शन से सम्बन्ध है, वे हार्दिक बधाई के पात्र हैं,
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