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संख्या ३]
नई पुस्तके
२७५
१९३१ में जो राजपूतःमराठा-कान्फरेंस हुई थी उसमें दिये पर उनकी कविता खरी उतरती है । स्थानाभाव के कारण गये भाषणों, प्रस्तावो का तथा कान्फरेंस से सहानुभूति केवल एक उदाहरण यहाँ दे देना यथेष्ट होगा । रखनेवाले सज्जनों के पत्रों का समावेश है । ये सभी लेख इस रंगमंच पर कितनों को आते-जाते देखा। व पत्र आदि भी तीनों भाषाओं में दिये गये हैं। इनसे कितनों को रोते देखा कितनों को गाते देखा । मराठों तथा राजपूतों का एक ही होना भली भाँति प्रमा- हँसते-हँसते जो आये आँसू बरसाते देखा। णित होता है । मराठों तथा राजपूतों को इन प्रमाणों पर दानी को अपना सूना आँचल फैलाते देखा ॥ विचार करना चाहिए। संघ ने जिस उद्देश से इन छोटी कुँवर सोमेश्वरसिंह में करुणा-प्रधान है, और सम्भवतः छोटी पुस्तिकात्रों का प्रकाशन किया है वह स्तुत्य है । अन्य यह युग का प्रभाव है । इस संघर्ष और विमर्ष के युग में ऐतिहासिक विद्वान् भी इनमें अनेक विचारणीय निर्देश करुणा का न होना आश्चर्यजनक होगा । पर हम अाशा पा सकते हैं।
करते हैं कि निकट भविष्य में उस करुणा और विवशता -कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० का स्थान प्राशा और विद्रोह ले लेगा। १२-रत्ना-लेखक, कुँवर सोमेश्वरसिंह, बी० ए०
-भगवतीचरण वर्मा
१३-प्रभा (मराठी)-मराठी का यह : सचित्र एल-एल० बी०, प्रकाशक, हिन्दी-मन्दिर-प्रयाग हैं ।
साप्ताहिक पत्र पाँच साल से निकल रहा है। इस पत्र में मूल्य ॥) है।
विशेष खूबी यह है कि इसके प्रत्येक अङ्ग में बारहों राशियों ___ कुँवर सोमेश्वरसिंह हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि ठाकुर
का भविष्य तथा किन्हीं किन्हीं अङ्कों में तो.पूरे महीने भर गोपालशरण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र हैं। उनकी कवितायें समय
का भविष्य दिया रहता है। इसमें सुरुचि-पूर्ण ऐतिहासिक समय पर हिन्दी के प्रमुख पत्रों में प्रकाशित होती रही हैं ।
कहानियाँ, उपन्यास भी रहते हैं । इस पत्र में स्त्री-पुरुषों 'रत्ना' उनकी कविताओं का प्रथम संग्रह है।
की चिकित्सा-सम्बन्धी चुटकुले भी जो संग्रह करने योग्य रला की कविताओं को पढ़ने के बाद यह कहा जा होते हैं. छापे जाते हैं । सकता है कि कुँवर सोमेश्वरसिंह हिन्दी के उन नवयुवक इस पत्र में निरी शिक्षाप्रद कहानियाँ और उपन्यास कवियों में प्रमुख हैं जिनसे हिन्दी-साहित्य का बहुत बड़ी ही नहीं होते, बल्कि मन बहलाव के चुटकुले और पहेलियाँ श्राशायें हैं। अाधुनिक 'छायावाद' की कविताओं में भी, जिनके सोचने से बुद्धि विकसित होती है। बीच बीच प्रारम्भिक काल में जो दोष आ गये थे वे अब धीरे धीरे में धार्मिक, व्यावसायिक तथा बड़े बड़े नेताओं के चित्र नवयुवक कवियों की कविताओं से निकलते जाते हैं- और उनके चरितों का सुन्दर वर्णन भी रहता है। सिनेमा
और आज-कल की कवितायें काफ़ी विकसित और सुन्दर का भी इस पत्र पर काफ़ी प्रभाव है । सिनेमा में काम करनेहो रही हैं । कुँवर सोमेश्वरसिंह की कवितात्रों को पढ़ने वाली अभिनेत्रियों के चित्र भी इसमें छापे जाते हैं। के बाद हम उस निर्णय पर पहुँचते हैं कि वे इस दौड़ में साल में तीन या चार विशेषाङ्क भी निकलते हैं। पीछे नहीं हैं।
पत्र सर्वथा उपयोगी है। इसका वार्षिक मूल्य पूने के उनकी कवितायें सरल, भावपूर्ण तथा स्पष्ट होती हैं। लिए केवल ३) और अन्य स्थानों के लिए ३।।) है । इसके शब्दों का खेल और कल्पना की दुरूहता उनमें नहीं है। सम्पादक हैं-श्री रा० ब० घोरपडे, बी० एस.सी. तथा इसके लिए हम उन्हें बधाई देते हैं । शब्द सीधे-सादे, भाषा संचालक हैं----डा० ना० भि० परुलेकर, एम० ए०, पी० सरल और इसके साथ हृदय को छू लेने की क्षमता-श्रेष्ठ एच० डी० मिलने का पता--६१७ कसबा, पूना । कविता का मेरे मतानुसार यही लक्षण है; और इस कसौटी
--भालचन्द्र दीक्षित
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