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सरस्वती
[भाग ३८
भोजन आदि कराने से निवृत्त होने के बाद सन्तोष अपने माननी ही पड़ेगी। यह कहकर उन्होंने सन्तोष से उठने कमरे में जाकर लेट गया। उसके ज़रा देर बाद ही बुअा को फिर कहा। जी उस कमरे में पहुंच गई। वहाँ जाकर उन्होंने देखा तो घर में बुया जी का अखण्ड प्रताप था । छः-सात वर्ष वह साफ़ के ऊपर लेटे लेटे वक्षस्थल पर दोनों बाह के बाद वे थोड़े दिनों के लिए अपने पित्रालय में अाया रक्खे हुए कुछ सोच रहा है। उस समय वह इतना करती थीं। छुटपन से ही वे बड़ी अभिम अधिक चिन्तामग्न था कि उसे बुआ जी के आने की ही उनका लाड़-चाव भी खूब था। जब कभी कोई उनकी श्राहट तक नहीं मिल सकी।
बात न मानता या किसी प्रकार से उनकी अवज्ञा करता ___ बुअा जी धीरे धीरे सन्तोष के बिलकुल समीप जा तो उसे वे सहन नहीं। कर सकती थीं। वे मुँह से कहा तो पहुँची और उसके ललाट पर हाथ रख दिया। बुबा के कुछ नहीं करती थीं, परन्तु उन्हें जब कोई कुछ कहता था स्पर्श करते ही सन्तोष चौंक पड़ा। ज़रा-सी म्लान हँसी तब वे तुरन्त ही रो पड़ती थीं, और उनका रोना जल्दी नहीं हँसकर उसने कहा-बुबा जी, क्या आप अभी तक समाप्त होता था। यही कारण था कि जब कभी वे पित्रालय सोई नहीं ?
__ में आतीं, सभी लोग उनके सामने फूंक फूंककर पैर रक्खा - एक धीमी-सी आह भरकर बुश्रा जी ने कहा- करते थे। वसु महोदय तक उनसे घबराते ही रहते थे। आज के इस शुभ दिन में तू यहाँ बाहर पड़ा है, और हम सन्तोषकुमार भी बुअा के स्वभाव को भली-भाँति जानता लोग निश्चिन्त होकर सावें! यह भी कभी सम्भव है ? था, इससे यह बात अनुभव किये बिना वह नहीं रह सका चल, भीतर चल, वह बेचारी लड़की अकेली पड़ी है ! कि यदि उनकी बात कट गई तो उनके हृदय को असह्य
बुअा के मुँह की अोर ताककर सन्तोष ने कहा- वेदना होगी। परन्तु फिर भी उसने स्पष्ट स्वर से ही मेरी तबीअत अच्छी नहीं है बुश्रा जी। मुझे चुपचाप सोने कहा- बुअा जी, आज तो मैं आपकी आज्ञा का उल्लङ्घन दीजिए। आप लोगों में से कोई जाकर उस कमरे में न कर सकूँगा, परन्तु कल से कृपा करके इस सम्बन्ध में सो रहे।
मुझसे कुछ न कहा कीजिएगा। आप मेरा मस्तक छूकर बुश्रा ने ज़रा-सा हँसकर कहा-तेरे समान पागल इस बात की प्रतिज्ञा कीजिए। लड़का तो मुझे और कहीं देखने में आया नहीं। अाज बुअा जी ने कहा-दुर पागल कहीं के ! यह भी भला हम लोगों को उसके कमरे में सोना चाहिए ? यह कोई ऐसी बात है कि मस्तक छुकर कहूँ ! अच्छी बात सब बहानाबाज़ी न चलेगी। उठ, जल्दी से चल यहाँ से। है। कल से मैं तुझसे कुछ न कहूँगी।
सन्तोष ने ज़रा अनुनयपूर्ण स्वर में कहा-आपकी बुश्रा जी ने मन ही मन कहा-अाज तो तुम चलो, बात मैं न काट सकूँगा बुबा जी । मुझे अब वहाँ जाने को कल से कहना ही न पड़ेगा। बहू का इस तरह का सुन्दर न कहिएगा।
मुँह देखते ही तुम ठिकाने पर आ जानोगे, कल तुम्हारा ___ सन्तोष की यह बात सुनकर बुबा ने दृढ़ और गम्भीर दिमाग़ इस तरह का न रहेगा। दस अक्षर अँगरेज़ी पढ़ स्वर से कहा--- सन्तू, पढ़-लिखकर तुम इस तरह के लेने पर लौंडों का दिमारा ही उल्टा हो जाता है। इसीमनमाने हो जानोगे, इस बात की आशा हम लोगों ने लिए तो बड़े लड़कों को अकेले रहने नहीं देना चाहिए । कभी नहीं की थी। छिः ! छिः ! दस आदमियों के बीच में ये लोग नाटक-उपन्यास पढकर स्वयं भी नायक-नायिका तुमने इस तरह हमारे मुँह में कारिख लगा दिया। जो बनना चाहते हैं। होना था वह तो हो ही गया. अब तो वह लौट नहीं सन्तोष को लेकर बुबा जी के भीतर पहुँचते ही स्त्रियों सकता । अब तू इस तरह का आचरण क्यों कर रहा है? ने उस समय के समस्त कर्मकाण्ड बात की बात में समाप्त देखा न. चारों तरफ़ दस भाई-बिरादरी के लोग कितना कर डाले । बाद का सन्तोष को सोने को कहकर बुबा जी हँस रहे हैं ? बाद को तेरी जो इच्छा होगी वही करना, ने दरवाजा भिड़ा दिया और वे स्वयं भी सोने चली गई। लेकिन जब तक मैं यहाँ रहूँ तब तक तो मेरी बात उनके जाने के बाद सन्तोष ने ज़मीन पर एक चटाई
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