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सरस्वती
[भाग ३८
हैं। मैं यह कल्पना नहीं कर सकती कि श्री संतराम जी संस्कृत से सर्वथा शून्य हैं। यही कह सकती हूँ कि अपनी बात का सिद्धान्त का रूप देने की उत्फुल्ल लालसा में अाकर यह सर्वथा अनर्थकारी अनुवाद कर आपने महाराज । मनु की हत्या तो की ही है, समस्त स्त्री-जाति को भी व्यभिचारिणी बना डाला है।
अब संतराम जी के लेख की जान यानी घटनाओं पर। एक निगाह डालिए। घटनाओं की सत्यता पर स्वयं संतराम जी जितना विश्वास कर सकते हैं, उतना कोई दूसरा नहीं कर सकता। उनमें एक घटना तो मैं नितान्त निरर्थक समझती हूँ। आपने एक तिवारी और उनकी अगरेज़-पत्नी का उल्लेख किया है। विषय के अनुसार आपने इस जोड़े। के मिलन में वासना का प्राधान्य माना है। मैं इन तिवारी जी को और इनकी पत्नी आयरिश महिला-अँगरेज़ नहींको संतराम जी शायद ठीक न जानते हो, अच्छी तरह । जानती हूँ। मैं ही नहीं श्रद्धेय स्वर्गीय गणेशशंकर जी भी इन्हें अच्छी तरह जानते थे और इनका आदर करते थे। विश्ववन्द्य महात्मा गांधी इनको जानते हैं और श्रीमती मीरा बहन (पुरातन मिस स्लेड) से इनका गहरा परिचय है। मैं कह सकती हूँ और ये सब लोग भी कह सकते हैं कि इस सम्मिलन के मूल में वासना नहीं है। फिर तिवारी जी भी बेकार आदमी नहीं हैं, कमाते हैं। श्रीमती जी बरतन नहीं माजतीं, उनके घर में नौकर हैं। इस सम्मिलन के मूल में क्या है ? क्या चीज़ है जिसने इन दोनों को मिला दिया
है ? मैं समझती हूँ कि संतराम जी का अनुमान यहाँ पर स्पेन के गृह-युद्ध में सरकार की ओर से लड़नेवाली
भी नहीं मार सकता। उसका उल्लेख भी नहीं हो सकता। प्रसिद्ध महिला “ला पैसियो नारिया"।]
स्वतन्त्र भारत का इतिहास ही उसके लिए उपयुक्त स्थान का एक श्लोक और कुछ घटनायें। मनु का श्लोक होगा। मैं समझती हूँ, श्री संतराम जी ने हिन्दु-संस्कृति से यह है
प्रेम करनेवाली इस पाश्चात्य देवी को इस कीचड़ में घसीट नैता रूपं परोक्षन्ते नासां वयसि संस्थितिः
कर एक अक्षम्य अपराध किया है, जिसके लिए उन्हें सुरूपं वा कुरूपं वा पुमानित्येव भुञ्जते। क्षमा मांगनी चाहिए। पौश्चल्याश्चलचित्ताश्च नैस्नेहाच्च स्वभावत:
संतराम जी ने जालन्धर के एक कुँजड़े का ज़िक्र किया रक्षिता यत्नतोऽपीह भर्तेष्वेता विकुर्वते ।। है जो किसी गोरे सार्जेन्ट की बीबी को भगा लाया है । आपको संतराम जी इसका अनुवाद करते हैं-"स्त्रियाँ न विश्वस्त सूत्र से मालूम हुअा है कि वह यूँघट निकालती पुरुष की सुन्दरता देखती हैं, न उसकी आयु देखती हैं, है, रोटी बनाती है और मार भी खाती है (वर्तन नहीं चाहे सुरूप हो या कुरूप, वे पुरुष में लिप्त हो जाती हैं। माँजती ?) । मैं संतराम जी के इस सनसनी-पूर्ण समाचार को 'पोश्चल्या' का अनुवाद श्री संतराम जी 'स्त्रियाँ' करते सर्वथा सत्य स्वीकार किये लेती हूँ, साथ ही यह भी पूछना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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