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संख्या २]
शनि की दशा
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से मेरा एकमात्र पुत्र इतनी दूर चला गया है ? असम्भव ! कर डाला । अतीत की सुखस्मृति उसे देखकर व्यङ्गय यह कभी नहीं हो सकता। मेरा वह सन्तोष जिसने कभी . कर रही थी । ऐसी दशा में भला निद्रा कैसे आती ? मेरी ओर अाँख उठाकर देखने तक का साहस नहीं किया, प्रातःकाल शय्या त्यागकर वसु महोदय ने नियमित जिसने कभी बुलाये बिना मेरे पास तक पाने का साहस रूप से शौच-स्नान तथा सन्ध्या-वन्दन आदि किया। बाद नहीं किया, क्या वही अाज उच्च शिक्षा प्राप्त करके मनुष्यता को वे अपने कचहरी के कमरे में आये। छोटे छोटे काम से इतना परे हो जायगा? क्या वह वृद्ध पिता के मुँह में करने के लिए उनके यहाँ एक लड़का नौकर था। उस . अन्तिम काल में एक बिन्दु जल छोड़ने के अधिकार से. दिन की डाक लाकर उसने उनके सामने रख दी और भी वञ्चित होना चाहता है ?
स्वयं दूर जाकर खड़ा हो गया । पास ही विपिन बाबू भी . राधामाधव बाबू मन ही मन बहुत दुःखी हुए । वे नर्चे में मुँह लगाये हुए बैठे थे। दीवान सदाशिव उस सोचने लगे कि मैंने बड़े अभिमान से, बड़ा भरोसा करके, समय तक भी आवश्यक काग़ज़-पत्र लेकर उपस्थित नहीं लड़के को कलकत्ते भेजा था। मुझे विश्वास था कि मेरा हा सके थे । वसु महादय एक एक पत्र खोलकर पढ़ने लड़का अपने कुल की मर्यादा से ज़रा भी विचलित न लगे। कई पत्र पढ़ चुकने के बाद उन्होंने जब एक पत्र होगा। क्या मुझे यह आशा थी कि मेरा सन्तोष मेरी सारी खोला तब उस पर दृष्टि जाते ही उनका चेहरा लाल । मानमर्यादा मिट्टी में मिला देगा? वह कभी ऐसे भी हो गया। वह पत्र उनके एक स्वामिभक्त असामी का मार्ग का अनुसरण करेगा कि समाज उसे देखकर घृणा लिखा हुआ था । वह पत्र इस प्रकार थासे मुंह फेर ले ? · भाई-बिरादरी के लोग उसे देखकर "महामान्य श्रीयुत राधामाधव वसु मखौल उड़ावें ? क्या यही सब अपमान और लाञ्छन
ज़मींदार बहादुर, सहन करने के लिए उसने मेरे यहाँ जन्म ग्रहण किया
महामहिमाणवेषुहै ? नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। चाहे जैसे भी हो, श्रीमान् की सेवा में दीन-हीन का निवेदन यह है कि उसे लौटालकर मैं ठीक रास्ते पर लाऊँगा ही।
सेवक का श्रीमान् के अन्न से पालन-पोषण हा है और राधामाधव बाबू का हृदय उस समय इतना दुखी हो श्रीमान इस दास के अन्नदाता भयत्राता और प्रभु हैं। गया था कि वे अपने आपको एकदम से भूल ही गये थे। इसलिए यह सेवक अपना धर्म समझता है कि श्रीमान् के बड़ी देर तक व्याकुल भाव से पुत्र के भावी जीवन के सांसारिक व्यापार से सम्बन्ध रखनेवाली हर एक बात दरसम्बन्ध में तरह तरह की बातें सोचने के बाद उन्होंने बार में पेश करता रहे। समाचार यह है कि श्रीमान् के कहा-भैया, बैठे ही बैठे बड़ी रात बीत गई । थके-थकाये युवराज बहादुर खोका बाबू कई मास से एक ब्राह्म के आये हो, चल कर विश्राम करो। कल सवेरे जैसा होगा, यहाँ बहुत आते-जाते हैं और उसी ब्राह्म की एक कन्या वैसा परामर्श किया जायगा। ठीक है न ?
के प्रति जो वेश्या का-सा शृङ्गार किये रहती है, खोका विपिन बाबू ने कहा-इस सम्बन्ध में एक बात मुझे बाबू का ज़्यादा झुकाव मालूम पड़ता है। श्रीमान् को और कहनी है। लड़के पर शासन करने या भयप्रदर्शन अन्नदाता समझकर यह दासानुदास स करने से कोई लाभ न होगा। जहाँ तक हो सके, उसे रहा है कि उक्त वेश्या का-सा रूप धारण करनेवाली कन्या समझा-बुझाकर ही रास्ते पर ले आने की कोशिश करनी के प्रति खोका बाबू के हृदय में विशेष प्रेम उत्पन्न हो गया चाहिए।
है और वे उसके भुलावे में पड़कर ब्राह्म-मत के अनुसार : अन्त में वे दोनों ही मित्र कमरे में जाकर सो गये। विवाह तक करने को तैयार हैं। इस तरह का कर्म हो जाने । उस रात्रि में वसु महोदय को निद्रा नहीं पा सकी । तरह पर श्रीमान् की मानहानि होनी सम्भव है। यह समझकर यह तरह की दुश्चिन्तात्रों से उनका चित्त व्यथित हो उठा। दासानुदास श्रीमान् को सूचना दे रहा है। श्रीमान् के अपने हृदय-पटल पर भविष्य का जो मधुमय चित्र उन्होंने चरण-कमलों में शतकोटि प्रणाम इति सेवकस्यअङ्कित कर रक्खा था उसे न-जाने किसने पोंछ कर साफ़ श्रीगदाधर पाल ।"
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