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सरस्वती
[ भाग ३८
(१) संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति में मिताक्षरा के मतानुसार महाराष्ट्र में भी उपर्युक्त सारी स्त्रियाँ उत्तराधिकारिणी
स्त्री को कुछ भी नहीं मिलता, चाहे वह माता हो, मानी जाती हैं । उनके सिवा ममेरी बहन, मौसी, फूश्रा, पुत्री हो या धर्मपत्नी हो । सब कुछ पुरुष को ही मिलता चचेरी बहन इत्यादि भी सूची में रक्खी गई हैं। है। दायभाग के अनुसार भी पुरुष के रहने पर स्त्री को भिन्न भिन्न स्थानों की स्त्री-उत्तराधिकारिणियों की कुछ नहीं मिलता। पुरुष के मरने पर यदि वह उसकी सूची देखने से अन्त में यह ज्ञात होता है कि इनकी संख्या उत्तराधिकारिणी हो सकेगी तो मिलेगा अन्यथा नहीं। कितनी कम है और इनके सम्पत्ति पाने की कितनी कम एक उदाहरण लीजिए। क के एक पुत्र है और एक सम्भावना रहती है। हिन्दू समाज की सम्पत्ति का बहुत कन्या। क के मरने के बाद सारी सम्पत्ति उसके पुत्र बड़ा भाग संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति है और उसमें स्त्रियों को मिल जाती है, कन्या को कुछ भी नहीं मिलता। को कोई भाग नहीं मिलता। दूसरा भाग उनकी पृथक यदि वह पुत्र भी मर जाय और संयुक्त परिवार में सम्पत्ति है। पर यह सम्पत्ति बहुत नहीं है, और जो कुछ है दूसरा कोई पुरुष न हो तो सम्पत्ति कन्या को मिलेगी, वह भी पुरुषों में ही बहुधा बँट जाती है। स्त्रियाँ पुरुषों , किन्तु वह इसलिए नहीं कि वह उस परिवार की है, के साथ साथ नहीं, किन्तु उनके बाद उस सम्पत्ति की किन्तु इसलिए कि वह अपने भाई की उत्तराधिका- अधिकारिणी होती हैं। इस प्रकार इस सम्पत्ति से भी वे रिणी है। इस प्रकार हमें ज्ञात होता है कि जहाँ प्रायः वञ्चित ही रहती हैं। फल यह होता है कि पारिवारिक तक पारिवारिक सम्पत्ति से सम्बन्ध है, स्त्रियों का सम्पत्ति का प्रायः सारा हिस्सा उन लोगों के अधिकार से स्थान अत्यन्त नगण्य है और वे पारिवारिक उत्तरा- सदा बाहर ही रहता है। - धिकार की परिधि के बाहर रक्खी गई हैं।
अब यह देखना है कि उत्तराधिकारिणी होने के बाद (२) पृथक् सम्पत्ति पाने का थोड़ा बहुत अधिकार स्त्रियों स्त्री का सम्पत्ति पर क्या अधिकार रहता है तथा अधिकार
को दिया गया है, किन्तु वह भी बहुत परिमित है। के परिमित होने का अर्थ क्या है। उत्तराधिकारियों की सूची में बहुत थोड़ी स्त्रियों के पूर्ण स्त्री-धन के विषय में कुछ भी नहीं कहना है। नाम हैं और जिनके नाम हैं भी, वे बहुत लोगों के उस पर स्त्री का उतना ही अधिकार है, जितना किसी पीछे हैं। फलतः उन्हें प्रायः सम्पत्ति बहुत कम पुरुष का अपनी सम्पत्ति पर ।। मिलती है और जो मिलती भी है उस पर उनका परिमित स्त्री-धन दो प्रकार का है। एक तो वह जिस पूरा अधिकार नहीं होता।
पर केवल स्त्री के पति का अधिकार होता है, और किसी बंगाल-मत के अनुसार पाँच स्त्रियाँ उत्तराधिकारिणी का नहीं। पति के मर जाने पर वह स्त्री का ही हो जाता मानी गई हैं-(१) विधवा पत्नी, (२) कन्या, (३) माता, है। इस प्रकार के स्त्री-धन का, पति के जीवन-काल में, (४) पितामही और (५) प्रपितामही । इनका स्थान क्रमशः स्त्री उपभोग तो कर सकती है, किन्तु उसे बेच या हटा चौथा, पाँचवाँ, आठवाँ, चौदहवाँ और बीसवाँ है। नहीं सकती। उसकी मृत्यु के बाद, यदि वह पति के मरने ___ काशी और मिथिला में उत्तराधिकारिणी स्त्रियों की के पहले मरे या बाद, वह सम्पत्ति उसके उत्तराधिकारियों संख्या अाठ है-(१) विधवा पत्नी, (२) कन्या, (३) माता, को ही मिलती है, पति के उत्तराधिकारियों को नहीं। (४) पितामही, (५) पुत्र की कन्या, (६) पुत्री की कन्या, दूसरा परिमित स्त्री-धन वह है जिस पर स्त्री को केवल (७) बहन और (८) प्रपितामही। इनका स्थान क्रमशः, उपभोग का अधिकार मिलता है और किसी बात का चौथा, पाँचवाँ, सातवाँ, बारहवाँ, तेरहवाँ (अ), तेरहवाँ नहीं। अपने जीवन में न तो उसे वह किसी को दे सकती (ब), तेरहवाँ (स) और सत्रहवाँ है।
है, न किसी प्रकार हटा सकती है। कुछ थोड़ी-सी शास्त्र___ मदरास में उपर्युक्त सभी स्त्रियाँ उत्तराधिकारिणी विहित आवश्यकताओं को छोड़कर यदि और किसी दूसरे मानी जाती हैं, और इनके सिवा भाई की पुत्री भी सूची में कारण से वह उस सम्पत्ति को बेच डाले या अपने पास से रक्खी गई है।
हटा दे तो उसकी मृत्यु के बाद उसका वह काम नाजायज़
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