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सरस्वती
[भाग :
दिया गया, जहां से वह फिर भाग निकला। चार या बाद राजकुमार म्यिगुन जो बनारस में रखा गया था, भाग निकला । चन्द्रनगर होता हुआ वह कोलम्बो जा पहचा, जहाँ से पांडिचेरी पहुँचने पर वह बन्दी कर लिया गया। वहाँ उसने कुछ शान रानों मे मिलकर फिर पड्यन्त्र प्रारम्भ किया, परन्तु मंच सरकार ने जो त्रिटिश मिशन के माण्डले छोड़ देने के बाद बड़ी सतर्कता से राज्य की स्थिरता सम्पन्न करने तथा राजा से व्यापारिक मुभीत प्राप्त करने की इच्छुक थी, इन पडयन्त्रों को दवा देने में ही अपना लाभ समझा । इसके साथ ही उसका यह भी विचार था कि इनके बन्द हो जाने से वर्मा में ब्रिटिश प्रभुत्व का न्यून होना अवश्यम्भावी है।
राजकुमार न्याँ ऊ यो की चढ़ाई के बदले में बनी सरकार ने अँगरेज़-सरकार से ५५८००) हर्जाना मांगा। इसके साथ ही राजकुमार के लौटा देने की भी मांग पेश की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने अन्तर्गप्रीय नीति के अनुमान वापस करने से इनकार कर दिया। इसी सिलसिले में पुराना व्यापार सन्धियाँ स्वयं भंग हो गई और राजा ने भी पुनः स्वायत्त व्यापार-नीति का अवलंबन किया, जिससे ब्रिटिश व्यापार का चलना एकदम असम्भव हो गया। इसी समय कुछ राजव्यवस्था तथा कुछ कर्मचारियों की निबलता के
कारण राज्य मुनियमित न रह सका. डाकुनी के गिरोह महालोक माया जे व कुतोडा पगोडा ग्रप का मुख्य बढ़ने लगे तथा शान सामन्तों ने भी यत्र तत्र सिर उठाना केन्द्रीय मन्दिर ।
प्रारम्भ कर दिया। ब्रिटिश भारत तथा वर्मा की सरहदों में
भी लूट-मार बढ़ने लगी। इसके साथ ही वर्मा-मिशन ने इसके साथ ही इरावती-पलोटिला-कम्पनी के कप्तान डायल योरप में दो योरपीय राष्ट्रों से जो नई सब्धियों की उनसे को सिर्फ इस जुम में बन्द कर रक्खा गया कि वे नदी-तीर परिस्थिति सुलझाने के बजाय अधिक विगढ़ गई। सन् के मनाही किये हुए एक राजकीय धार्मिक स्थान पर जूतो- १८८२ में शिमला-बर्मा के बीच नई सन्धि का प्रयत्न नी समेत जा उतरे थे। राजा ने डायल को कैद रखनेवाले असफल ही सिद्ध हुग्रा. क्योंकि राजमंत्री किनबुन मिजी के अफसर को नौकरी से निकाल दिया। कर्नल विन्दम के द्वारा लिखी गई सन्धि को राजा ने स्वीकार करना उचित बारे में रेजीडेंट मिस्टर शा ने कोई विशेष मांग नहीं पेश न समझा। की, परन्तु राजकुमारों के कत्ले-ग्राम के बारे में जवाब । माँगा तथा इस घटना के विरोधस्वरूप सन् १८७९ में कर्मचारियों को राजकुमार म्यिगुन को गद्दी पर बिठाने के ब्रिटिश मिशन माण्डले से बुला लिया गया। पड्यन्त्र के सिलसिले में कैद की सज़ा दी गई। दूसरे
सन् १८८० में राजकुमार न्याँक यो ने थाटम्यो-ज़िले अधिकारियों ने जो पडयन्त्र में स्वयं शामिल थे, बन्दी हुए में विद्रोह खड़ा किया, जहाँ से भागकर वह ब्रिटिश प्रदेश अधिकारियों-द्वारा पडयन्त्र के प्रकट हो जाने के डर से. में आ छिपा । यहाँ वह पकड़ा गया और कलकत्ते पहँचा उन्हें वध करा देना चाहा। उन्होंने कुछ बन्दियों की गुप्त
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