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संख्या ३]
बर्मा पर अँगरेजों का आधिपत्य
गया और २७ नवम्बर को सेना पुरानी राजधानी अावा में प्रकार इस तीसरे ऐंग्लो-बर्मी युद्ध का अन्तिम भाग्य-निर्णय जा पहुंची। इसी दिने पुनः विश्वास के चिह्न-रूप में राजा हुआ। की ओर से एक और समाचार भेजा गया, जिसमें ब्रिटिश राजा थीबा ३ दिसम्बर को अपनी दो रानियों तथा सेनाओं से विरोध न किये जाने तथा इस शान्ति-चर्चा के राजमाता-समेत सदा के लिए माण्डले से बिदा हो गये सबूत में बर्मा-सेनाओं का शस्त्र-त्याग करने का वचन दिया और १० दिसम्बर को एक बन्दी के रूप में रंगून से रवाना गया था। परन्तु उपर्यक्त घटनात्रों के बावजूद सेना बढ़- होते हुए सदा के लिए अपनी जन्मभूमि को भी छोड़ गये । कर २८ नवम्बर को माण्डले जा पहुँची और कहा जाता पहले वे मदरास पहुँचाये गये, पीछे बम्बई के समुद्र-तटस्थ है कि अगले दिन सायंकाल के समय राजा को विरोध रत्नागिरि, जहाँ वे सन् १९१७ में एक निर्वासित के रूप प्रस्तुत किये बिना अात्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके फल- में परलोक को प्राप्त हुए। उनके मंत्री टेन्डाव मिंजी स्वरूप न केवल उसे अपितु समस्त राजपरिवार तथा ब्रिटिश हितों के विरोधी कटक में निर्वासित किये गये। बर्मा-देशवासियों को देशीय शासन के महान् लाभों पहली जनवरी १८८६ को भारत सरकार की घोषणा द्वारा से वञ्चित होना पड़ा। इधर बर्मी सेनायें भी इस अपर बर्मा का समस्त प्रदेश ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत प्रकार राजा के अनायास ही पकड़ लिये जाने पर कर लिया गया। इस प्रकार सारा बर्मा अँगरेज़-सरकार के किंकर्तव्यविमूढ होकर स्वयं तितर-बितर हो गई। इस अधीन हो गया।
मधुमास
लेखक, श्रीयुत गंगाप्रसाद पाण्डेय देख प्रिय मधुमास आया छा रहा उल्लास वन में | प्रियतमायें स्नेह स्वागत में मिलन का सन्देश मृदुतर
सजल पलकें बिछाती चल पवन जग को सुनाता
कर रहीं अभिसार नव-नव पुलक पल्लव लहलहाते
वेश सुन्दरियाँ बनाती प्रीति का पल गीत गाता विश्व-जीवन सरस-सर में आज निज अंचल प्रकृति ने
प्राण पंकज-सा खिला है हरित पट का है बनाया
प्रणय का संसार को लाल केसर के मनोहर
__ साकार सा वर आ मिला है तार से जिसको सजाया छिड़ रही नव रागिनी है पर्णिका, गृह में भवन में। है मचलता स्निग्ध सुन्दर हास कलिका में सुमन में। साध जीवन की सहज ही
मैं बना पर चिर वियोगी कोकिला कर पूर्ण पाई
प्यार का अभिशाप लेकर भृङ्ग-दल के संग मिलकर
मौन वाणी स्तब्ध लोचन भाग्य को देती बधाई
अश्रु-जल का अर्घ्य देकर सुरभि-भीनी से भरा जग।
हूँ प्रतीक्षा में युगों से स्वर्ग-सा अब बन गया है
कर रहा आह्वान तेरा चेतना जड़ में छहरती ।
हे उषे ! उठकर क्षितिज से सुख-सना क्षण क्षण नया है .
आज रख ले मान मेरा , व्याप्त है सुषमा सुनहली सलिल में स्थल में गगन में। तिमिर चारों ओर फैला हृदय में मन में नयन में। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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