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संख्या ३ ।
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योरप के उपनिवेश
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धीरे धीरे जर्मनी ने अपनी स्थिति पक्की कर ली है और सम्भवतः वह उसे प्राप्त करके ही छोड़ेगा, चाहे उसे पिछले चार-पांच वर्षों के अन्दर तो हिटलर ने सबको यह इसके लिए कितना ही मूल्य क्यों न चुकाना पड़े। दिखा दिया है कि वह किसी बात में दूसरे योरपीय राष्ट्र यह प्रश्न धीरे धीरे अब इतना गम्भीर हो चला है से पीछे न रहेगा। वह 'सब बातों में समानता का अधिकार कि उपनिवेश रखनेवाले साम्राज्यवादी राष्ट्र और प्रधानतः माँगता है। पहले जर्मनी ने अपनी सेना को सुसंगठित इंग्लेंड को इस समस्या के सुलझाने की फ़िक्र हो गई है। करके वारसेलीज़ की सन्धि की उस धारा को ठुकरा दिया सितम्बर १९३५ की राष्ट्र-संघ की एसेम्बली की बैठक में जिसके द्वारा उस पर अधिक सेना और वायुयान रखने सर सेम्युअल होर ने जो उस समय पर-राष्ट्र-सचिव थे, पर प्रतिबन्ध लगे हुए थे।
कहा था कि उन देशों को भी कच्चा माल लेने में सुविधा ___ इटलीवालों की तरह जर्मन लोगों को भी अपनी दी जाय जिनके पास उपनिवेश नहीं हैं। सच तो यह है श्रावश्यकता की पूर्ति के लिए उपनिवेश चाहिए । नाज़ी- कि उपनिवेशों की समस्या बड़ी विकट होती जा रही है। पार्टी के प्रोग्राम में इसका तीसरा नम्बर है। इसके पहले या तो इटली और जर्मनी को उपनिवेश दिये जायँ या फिर प्रेसीडेंट हिंडनबर्ग ने भी कहा था-"बिना उपनिवेशों के वे बल द्वारा रोके जायँ । पर यह इतना आसान नहीं है। कच्चे माल के मिलने की कोई पक्की बात नहीं हो सकती, ब्रिटेन को अपने फैले हुए उपनिवेशों की रक्षा करने में बिना कच्चे माल के उद्योग-धन्धे नहीं चल सकते और कठिनता मालूम होती है। डच-सरकार ने जावा के उद्योग-धन्धों के बिना काम नहीं मिल सकता, इसलिए पहाड़ों में किले बनाये हैं, जिससे हमले के समय उनमें जर्मनी को उपनिवेशों की आवश्यकता है।"
जाकर अपनी रक्षा की जा सके। आस्ट्रेलिया के लोगों को _इसके उत्तर में कुछ राष्ट्रों की तरफ़ से यह कहा गया भी अपनी कम जन-संख्या के कारण अपनी रक्षा की फ़िक्र था कि जर्मनी तथा और दूसरे बिना उपनिवेशवाले राष्ट्र पड़ी हुई है। पुर्तगाल के अफ्रीकन उपनिवेश इस दशा मेंडटरी देशों का कच्चा माल ले सकते हैं, जो इस में हैं कि यदि कोई हमला कर दे तो उनकी रक्षा करनी समय राष्ट्र संघ की देख-भाल में हैं । पर जर्मनी के नेता कठिन हो जाय और पुर्तगाल को इसमें सन्देह हो रहा है कहते हैं कि उन्हें जर्मनी के लिए कच्चा माल उसी कि २७५ वर्ष पुरानी सन्धि के अनुसार इंग्लेंड उनकी रक्षा देश से चाहिए. जहाँ उसका सिक्का चलता हो । मेंडेटरी में उसकी सहायता कर भी सकेगा। बेलजियम की भी देशों के माल के लिए तो उसे विदेशी मुद्रा में मूल्य करीब करीब यही अवस्था है । केवल फ्रांस को इस विषय चुकाना होगा।
में कोई भारी चिन्ता नहीं है। उसने अपने उपनिवेशों में जर्मन राष्ट्र के अधिक लोगों को भी बाहर बसाने अपनी सहायता के लिए अच्छी सेना तैयार कर ली है। के सम्बन्ध में उनका कहना है कि वे फिर जर्मन-जाति ऐसी अवस्था में दो-तीन सैनिक राष्ट्रों का बिना उपनिवेशों से बिलकुल अलग हो जायँगे। इसके अतिरिक्त कुछ के होना बड़ा भयानक हो सकता है। लोगों का विचार है कि उन उपनिवेशों में अधिक लोग यह प्रश्न का एक ही पहलू है । वे आदि-निवासी जो नहीं बस सकते । पर जर्मनी के नेता कहते हैं कि उन शुरू से इन देशों में बसते चले आये हैं और जिन्हें सभ्य राष्ट्रों के लिए भले ही उन उपनिवेशों का मूल्य न हो बनाने का ठेका योरप की श्वेत जातियों ने लिया है, कब जिनके पास काफ़ी से ज़्यादा उपनिवेश हैं, पर जर्मनी के तक इस दशा में रहते चले जायेंगे ? मित्र और लंका को
तो वे उपनिवेश अावश्यक हैं और वे वहाँ लोगों एक प्रकार से स्वतन्त्रता मिल ही गई है और शायद भारत को बसाकर उन्हें खूब श्राबाद तथा रहने योग्य बनाने का को भी औपनिवेशिक स्वराज्य मिल जाय । चीन अपनी प्रयत्न करेंगे। पर इससे भी अधिक महत्त्व की बात तो यह निद्रा से जागकर संगठित होने का प्रयत्न कर रहा है। होगी कि उपनिवेश मिल जाने पर जर्मनी दूसरे राष्ट्रों के इसी प्रकार किसी दिन अफ्रीकावासी भी अपनी स्वतंत्रता समान हो सकेगा। योरपीय राष्ट्रों में समानता का अधिकार माँगेंगे । वे हमेशा श्वेत जातियों के गुलाम है प्राप्त करने के लिए जर्मनी बुरी तरह तुला हुआ है और पसन्द नहीं करेंगे।
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