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संख्या ३]
आत्म-चरित
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जा सकता है। ऐसे वार्तालाप के लिए यह आवश्यक है यदि उसका वार्तालाप प्रकाशित हो जाता तो उसके कि यह उन्हीं के साथ हो जिनके सामने बातें करनेवाला सम्बन्ध में संसार की दूसरी राय होती। उसने खूब कहा है स्वतंत्र हो । जान्सन के आन्तरिक जीवन का संसार को कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि संसार के मञ्च पता न होता यदि बोज़वेल की लेखनी ने उनकी इतनी को छोड़ते ही लोग हमें भुला देते हैं, और तब भी हम . सहायता न की होती। जान्सन बहुत मशहूर बात-चीत किसी के ध्यान को आकर्षित नहीं करते हैं जब मञ्च पर करनेवाले थे और कोई शब्द शायद ही उनके मुँह से ऐसा होते हैं । निकला होगा जिसे बोजवेल ने उनके जीवनचरित में न अपने जीवन के वृत्तान्त और अनुभवों को हमें सीधेलिखा हो । न हर आदमी जान्सन हो सकता है और न सादे और स्वाभाविक रीति से वर्णन कर देना चाहिए । उसका यह सौभाग्य हो सकता है कि उसे बोज़वेल मिल आलिवर गोल्डस्मिथ ने लिखा है कि इसका ध्यान रखना जाय । अपने वार्तालाप से अपने को अपना जीवनचरित चाहिए कि यथार्थतायें विद्वत्ता के बोझ से दब न जायें । लिखने में बहुत सहायता नहीं मिलती है। यदि जान्सन हम सबको अपने इस कठिन कार्य में सफल समझना खद अपना जीवनचरित लिखने बैठते तो अपने वार्तालाप चाहिए, यदि एक व्यक्ति का भी गलत रास्ते पर पैर पड़ने से उतना फ़ायदा न उठा पाते जितना बोज़वेल ने उठाया से बच जाय और इसी तरह कुछ न कुछ अपने साहित्य है। हैज़लिट भी बड़ा काबिल बात-चीत करनेवाला था। की सेवा हो जाय । एक दफ़ स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले उसका यह बड़ा अभाग्य है कि उसके वार्तालाप का कोई ने एक दूसरे सम्बन्ध में कहा था कि वे लोग थोड़े दिनों भी अंश संसार के सामने नहीं है। उसे उसकी ज़िन्दगी बाद आवेंगे जो सफलता से देश की सेवा करेंगे। हम में क्या, अभी तक कोई ठीक नहीं समझ पाया है। सबको तो अपनी असफलताओं से ही सेवा करना है।'
हँसी की एक रेखा
लेखक, श्रीयुत कुँवर हरिश्चन्द्रदेव वर्मा 'चातक'
गगन-अङ्क में बड़े चाव सेचन्द्र विहँसता देख । तेरे मधुर हास की उसमें
समझ एक लघु रेख ।
उछल उछल के मोद मनाता चाहक चित्त-चकोर । इकटक उसे देखते प्यारे।
हो जाता है भोर।
फिर विछोह-वेदना-पिशाची करती है बेचैन । थक जाते हैं रोते रोते
मुझ दुखिया के नैन ।
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