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सरस्वती
[भाग ३८
· और उसमें से युद्ध के कारण न पैदा हों। डिक्टेटरों को चाहे उपनिवेशों का प्रश्न किसी प्रकार हल हो, अपने स्थान को दृढ़ रखने के लिए भी यह आवश्यक है समझौते से या युद्ध-द्वारा, इसका निकट भविष्य में सुलझना कि वे देश के नौजवानों को 'कुछ' करने का मौका दें। आवश्यक है। इसके सुलझने से अन्तर्राष्ट्रीय समस्या योरप में युद्ध की चुनौती एक-दूसरे राष्ट्र को देना आसान भी अवश्य कुछ न कुछ सुलझ जायगी। पर हमें इससे नहीं है । सभी राष्ट्र पूरी तैयारी किये बैठे हैं, इसलिए वही सम्बन्धित एक प्रश्न पर विचार करना पड़ेगा। मौका देखकर छेड़-छाड़ करते हैं जहाँ दूसरा पक्ष अधिक
हमने देखा है कि इटली के लिए अबीसीनिया कोई निर्बल होता है। इटली-अबीसीनिया का युद्ध इस बात का बहुत बड़े आर्थिक महत्त्व का नहीं हो सकता और यही जीता-जागता उदाहरण है। जर्मनी को उपनिवेशों की माँग के बारे में कहा जा सकता . फिर भी शायद समझौते-द्वारा फैसला हो जाने से है। आर्थिक प्रश्न बिना पशुबल के भी हल हो सकते हैं। युद्ध की आग कुछ दिन और भड़कने से रुक जाय और यहाँ तो हमें प्रधानतः इटली और जर्मनी की मनोवृत्ति का नाहक बेचारे काले लोगों का जो इसमें गेहूँ के साथ धुन अवलोकन करना है। हिटलर और मुसोलिनी महायुद्ध की तरह पिस जायँगे खून बहने से बच जाय । सम्भवतः के बाद की भयंकर परिस्थितियों से फ़ायदा उठा कर दो इंग्लेंड इस विषय में कुछ न कुछ अवश्य करेगा, क्योंकि विशाल राष्ट्रों के कर्ता-धर्ता बन बैठे हैं। यह प्रधानतः वह इस खतरे को अच्छी तरह समझे हुए है और इतने उन्होंने लोगों के हृदय में भय का संचार कर तथा सैनिक विशाल साम्राज्य को लिये हुए है। बिना किसी समझौते वृत्ति का पोषण करके किया है। इसके साथ ही यह सम्भव के वह सुख की नींद न सो सकेगा। नहीं कि किसी देश में सैनिक वृत्ति को खूब पोसा जाय
कवि के प्रति
श्रीयुत श्रीमन्नारायण अग्रवाल, एम० ए० कवि ! पागल तुम मधुशाला में,
किन्तु तुम्हारे उर में जागृत, मैं पागल तव पागलपन पर ।
___दया नहीं कवि ! पल भर । मतवाले हो मधुशाला की,
सुरापान तो तुम्हें सुहावे, मस्तानी मदिरा में,
चिर जीवो मतवाले ! ध्यान नहीं जाता किंचित् भी,
हम तो मस्त इसी रोटी में, दुखियों के क्रन्दन पर।
श्रम मिस रक्त बहाकर। कवियों का मानस तो कोमल,
__* "रोटी का राग" जिसमें से यह कविता ली गई द्रवीभूत होता है, है, शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
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AANGLA
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