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'सरस्वती
तो भारत की वर्तमान दरिद्रता श्राज इतने भीषण रूप में अस्तित्व में आई होती ।
जंगली जानवरों से खेती की हानि
संयुक्त प्रान्त के कई जिलों में जंगली जानवरों के ऐसे बड़े बड़े दल आज भी पाये जाते हैं जिनके कारण वहाँ के किसानों को बड़ी हानि उठानी पड़ती है । प्रसन्नता की बात है कि इस र फतेहपुर के कलेक्टर श्रीयुत दर का ध्यान आकृष्ट हुआ है और वे उनका उन्मूलन करने के लिए एक योजना का कार्य का रूप देना चाहते हैं । उनके ज़िले में तथा कानपुर, उन्नाव और रायबरेली जिले के गंगा के कछार में हज़ारों की संख्या में जंगली गायें, नीलगायें, सूर तथा हिरन आदि फैले हुए | अन्दाज़ किया गया है कि अकेले फ़तेहपुर के जिले में ऐसे जानवर संख्या में सात हज़ार से ज़्यादा होंगे। श्रीयुत दर ने पहले तो इन्हें शिकारियों को भेजकर गोली से मरवा डालने का प्रयत्न किया । परन्तु वे ऐसा प्रयत्न कर रहे हैं कि गायें तो पकड़ कर गोशालाओं को या उन लोगों का जो उन्हें पालना चाहें, दे दी जायें। शेष जंगली पशु एक दम मार डा जायँ या पकड़कर जैसे बैल, घोड़े आदि नीलाम कर दिये जायँ । उन्होंने इस बात की लोगों को सूचना भी दे दी है कि जो लोग पुरानी पद्धति के अनुसार अपने जानवर खुला छोड़ दिया करेंगे उन पर मुकद्दमे चलाये जायँगे और वे दडित किये जायँगे, क्योंकि उनके वैसा करने से जंगली जानवरों की संख्या में वृद्धि होती है । संयुक्तप्रान्त के कई जिलों में होली के बाद सारे पशु खुले छोड़ दिये जाते हैं और वर्षा होने पर जब फिर जुताई- बुवाई शुरू होती है तब कहीं जाकर वे बाँधे जाते हैं। इस पद्धति के कारण गरमी के दिनों की खेती को तो हानि होती ही है, साथ ही जो किसान चैती की फसल काटने में पिछड़ जाते हैं और जो खरीफ़ की फ़सल ठीक समय में जल्दी बा लेते हैं वे सभी पशुओं के खुला रहने के कारण बड़ी हानि उठाते हैं । अतएव इनकी रोक-थाम करना कहीं अधिक ज़रूरी है, और दर साहब ने इस बात की ओर भी ख़ास तौर पर ध्यान दिया है । क्या ही अच्छा हो, यदि अन्य जिलों के अधिकारी इस समस्या की ओर ध्यान देकर बेचारे दीन किसानों की रक्षा करें। आशा है, फ़तेहपुर के इस प्रदर्श
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[ भाग ३८
प्रयत्न का अन्य जिलों के अधिकारियों पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा और वे भी इस ओर जल्दी ही यत्नवान् होंगे।
लखनऊ की औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी गत ५वीं दिसम्बर से इस प्रान्त की सरकार की ओर से लखनऊ में एक प्रौद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी हो रही है। यह प्रदर्शनी अभी ४ फ़रवरी तक चलेगी। इन दो महीनों में लाखों नर-नारी इस प्रदर्शनी की सैर करके अपने देश के औद्योगिक विकास और कृषि सम्बन्धी उन्नति के सम्बन्ध में बहुत-सी बातें जान सकेंगे। दुःख की बात है कि इस प्रदर्शनी के प्रकाशन विभाग ने हिन्दी - पत्रों की बहुत कुछ उपेक्षा की । जनता के कृषि और औद्योगिक ज्ञान- वृद्धि का ध्यान रखते हुए इसके प्रकाशन विभाग को इस प्रान्त की भाषाओं में निकलनेवाले पत्रों में अपनी सूचनायें और विवरण भेजने चाहिए थे । श्रारम्भ में दर्शकों की संख्या में कमी और प्रदर्शनी के सम्बन्ध में ग़लत अफवाहें फैलने का यह भी एक कारण है । लगभग एक महीने बाद प्रकाशन विभाग ने किसी श्रंश तक यह भूल सुधारी और दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई । पर मासिक पत्रिकायें इसके विवरणों से वञ्चित ही रहीं, यद्यपि उन सबमें सचित्र विवरण भेजे जा सकते थे और इस प्रकार दर्शकों की संख्या में वृद्धि करके प्रदर्शनी और भी सफल बनाई जा सकती थी । हमें तो एक भी चित्र या विज्ञप्ति नहीं प्राप्त हुई । ख़ैर |
यह प्रदर्शनी एक बड़े पैमाने पर हो रही है और बहुत दूर तक फैली हुई है । सजावट अत्यन्त सुरुचिपूर्ण है। और रात में एकड़ों के विस्तार में जो रोशनी होती है वह देखने लायक होती है। दर्शकों के आराम देने के उद्देश से प्रदर्शनी के भीतर एक छोटी-सी रेलगाड़ी भी दौड़ाने की व्यवस्था की गई थी, पर उसका इंजन बेकार सिद्ध हुआ और इंजन का काम एक मोटर के पहियों में कुछ परिवर्तन करके लिया गया। लोग इस गाड़ी पर भी बैठे नज़र आते थे, पर रेल का इंजन जो दृश्य उपस्थित करता वह इससे बहुत कुछ फीका रहा। प्रदर्शनी के मध्य में एक झील बनाई गई है, जिसमें छोटी छोटी मोटर वोटों का चलना बहुत ही भला मालूम होता है । इस प्रदर्शनी ने भारत की कई रियासतों का भी सहयोग प्राप्त किया है और
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