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सरस्वती .
[भाग ३८
भवन व ख़ज़ाने के दफ़र के पास बागीचे में आये । इस बाग़ीचे में कैप्टन कुक का जिन्होंने आस्ट्रेलिया में ब्रिटिश भंडा गाड़ा था, घर देखने गये। यह कैप्टन कुक का
विलायत का घर है। [सिडनी के समुद्र-तट पर स्नान प्रेमियों की भीड़ का एक दृश्य ।]
१८३४ में मेल्बोर्न की थी। परिचय प्राप्त करने की कोशिश की। मालूम हुआ शताब्दी मनाई गई थी। उस वक्त यह घर मेल्बोन-कोसिल कि सपत्नीक सजन फ़ीजी से सिडने अाकर बम्बई जा रहे को इनाम में दे दिया गया था। कौंसिल ने इंटी-लकड़ीहैं। मख़मली टोपीवाले सज्जन थियासोफी के प्रचारक समेत सारे मकान को विलायत से उखाड़कर जैसा का तैसा मिस्टर जिनराजदास निकले, जो उस समय आस्ट्रेलिया में इस बगीचे के एक किनारे में खड़ा कर दिया है । इस मकान लेकचर दे रहे थे। वे मेल्बोर्न तक ही इस जहाज़ से जा में १०० साल पहले का दुनिया का एक नक्शा टॅगा है, रहे थे। चार हिन्दुस्तानियों का दल न्यूज़ीलैंड से आया जिसे कैप्टन कुक ने अपनी सफ़र में इस्तेमाल किया था। था। वह भी बम्बई जा रहा था। उनसे ज्ञात हुआ कि वे इस तरह घूमते-फिरते १२ बज गये। एक भोजनालय में न्यजीलैंड में फल-तरकारी बेचने का व्यवसाय करते हैं भोजन कर नदी पार जाकर बोटेनिकल गार्डन और गवर्नतथा वहाँ हिन्दुस्तानी आदमियों की संख्या लगभग दो मेंट-हाउस देखते हुए बार-मेमोरियल पहुंचे। यह एक बड़ी हज़ार के है। वे सब गुजरात के रहनेवाले हैं। अब वहाँ भव्य इमारत है। ऊँची जगह पर स्थित है। इसके बनाने बाहरवालों का जाना बन्द है। वे लोग इस कानून के होने में करीब १५ लाख रुपया खर्च हुअा है। ऊपर चढ़ने को के पहले न्यूज़ीलैंड पहुँच गये थे।
सीढ़ी बनी है, जो कुछ ऊपर जाकर ख़त्म हो जाती है । ___फ्रीजीवाले सज्जन वहाँ दूकान रखकर व्यवसाय करते चारों तरफ़ थोड़ा-थोड़ा हिस्सा खुला हुआ है, बाकी स्तूप हैं । उनकी हिन्दुस्तानी अवध-प्रांत की ग्रामीण भाषा थी, के ढंग पर ऊँचा चला गया है । इस खुली छत से मेल्बोर्न जिससे जान पड़ा कि वहाँ इस प्रांत के बहुत-से लोग हैं। शहर का अच्छा दृश्य दिखता है। इस इमारत में रोशनी शुद्ध हिन्दी बोलनेवालों का सम्पर्क न होने की वजह से का भीतर प्रवेश नहीं है । हमेशा बिजली की बत्ती से रोशनी ग्रामीण भाषा ही वे सीख सके। मुझे फ़ीजी पाने के लिए हुआ करती है। इमारत के चारों तरफ़ सुन्दर बागीचा उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया।
है । यहाँ युद्ध में हर एक काम आये हुए व्यक्ति के नाम के पाँचवीं तारीख़ की सुबह को हमारा जहाज़ मेल्बोर्न पेड़ लगाये गये हैं, जिनमें नाम की तख्ती टॅगी है। ढाई पहुँचा। जहाज़ रुकने का स्थान शहर से करीब ६ मील बजे मोटरबस सैलानियों को घुमाने के लिए छूटती है। पड़ता था। रेल से शहर आने-जाने का ज़रिया था। मेरी एक ढाई घण्टे की सैर थी। किराया ढाई शिलिंग था। टिकट अँगरेज़ से अच्छी मित्रता हो जाने के कारण वह और मैं लेकर उसमें जा बैठे। यह सैर ज़्यादातर मेल्बोर्न के पड़ोस साथ-साथ शहर जाने व देखने के लिए चले। भोजन कर की थी। इसमें कोई मार्के की बात देखने में नहीं आई। नौ बजे रेल पर बैठे। आने-जाने का डेढ़ शिलिंग भाड़ा इस नगर में मुझे एवेन्यू बहुत पसंद आये। सड़कों के था। शहर में मिल डर्स-स्ट्रीट स्टेशन पर जाकर उतरे। मध्य के बग़ल में दोनों तरफ़ छायादार वृक्ष लगे हुए हैं।
वहाँ से एलिज़ाबेथ-स्ट्रीट में दूकान देखते हुए डाक-घर कहीं ताड़ हैं तो कहीं दूसरे किस्म के पेड़ । इन एवेन्युगों से गये । वहाँ से लौटकर कालिन्स-स्ट्रीट होते हुए पार्लियामेंट- निकलने पर तबीअत प्रसन्न हो उठी थी। इस तरह धूम
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