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सरस्वती
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[चार० ई०
पाई । उस दिन घूम घूमकर मैंने क़रीब क़रीब सारी बस्ती देख डाली | आर० ई० ग्रा० कालेज, टेक्निकल कालेज, मिडिल स्कूल, माडेल इंडस्ट्रीज़, बोर्डिङ्ग हाउस, , बैंक, दूकानें, डाकघर, दयालभंडार (जहाँ पकाअस्पताल, पकाया भोजन मिलता है), सत्संग का विशाल खुला हुना हाल इत्यादि सभी मैंने देखे । दो-तीन घंटों में इतनी इमा रतों और कारखानों को मैं अच्छी तरह नहीं देख सकता था, पर सभी की थोड़ी-बहुत जानकारी जरूर हासिल कर ली। सोचा कि स्काउटिंग के नाते यहां का ग्राना-जाना बराबर बना रहेगा, मौक़ा पाकर सभी चीज़ों को अच्छी तरह देख लूँगा । लेकिन उस दिन की उस सैर से ही मुझे मालूम हो गया कि दयालबाग़ सभी तरह भरपूर है और वहाँ के रहनेवालों को बाहरवालों का मुँह ताकने की ज़रूरत नहीं ।
मैंने दयालबाग के संबन्ध में कई महानुभावों की रिपोर्टें पढ़ी थीं। उनमें से कइयों ने कहा है कि अगर हिन्दुस्तान
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कालेज के विद्यार्थी ।]
[ भाग ३८
में कई दयालबाग हो जायँ तो इस देश की समस्या जल्द हल हो जाय । दयालबाग को देखने के बाद ही मैं इस उक्ति का श्राशय अच्छी तरह समझ सका ।
दयालबाग की सब बातों में मुझे एक ख़ास तौर के प्रबन्ध की झलक दिखाई दी । एक जगह पर मुझे दो-तीन ऐसे आदमी मिले, जो पुलिस की तरह पोशाक पहने थे। पूछने पर मालूम हुआ कि दयालबाग़ की अपनी पुलिस है । इतना ही नहीं, मुझे यह भी मालूम हुआ कि दयालबाग की सभी बातों के प्रबन्ध के लिए एक बोर्ड है। उसके सदस्यों का चुनाव समय-समय पर होता है और वे वहाँ के विविध विभागों की देख-रेख करते हैं। मैं समझ गया कि वहाँ न केवल अच्छा प्रबन्ध ही है, बल्कि अपना काम आप ही चला लेने के लिए लोगों को अच्छी से अच्छी शिक्षा भी दी जा रही है । दयालबाग जाने से पहले मैं समझता था कि वहाँ लोग
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