________________
संख्या २ ]
साहब जी महाराज और उनका दयालबाग़
shouti
[टेक्निकल कालेज के शिक्षक और विद्यार्थी ]
मैं इस बार किसी खास काम से दयालबाग़ नहीं गया था । मेरे श्रद्धेय सहकारी पंडित श्रीराम वाजपेयी दयालबाग़ के स्काउटों को देखने गये थे। उसी सिलसिले में मैं भी उनके साथ चला गया था ।
गेस्ट हाउस में थोड़ी देर ठहरने के बाद हम लोगों को "साहब जी महाराज के पास जाना पड़ा। साहब जी महाराज उस दिन पास के एक बाग़ में खुली जगह पर एक गद्दी पर विराजमान थे और उनके सामने बैठे हुए सैकड़ों सत्संगी भाई प्रेम और भक्ति-भरी नज़रों से उनकी ओर देख रहे थे । दूर से मैंने जब उस मंडली को देखा तब साहब जी महाराज को मुस्कराते हुए पाया था । वे कुछ कह रहे थे, पर अपने भावों को शब्दों की अपेक्षा मुस्कराहट से ही ज्यादा प्रकट कर रहे थे । हम लोगों के पास जाने पर उन्होंने हम लोगों से प्रेम-पूर्वक बात-चीत की, वाजपेयी जी का उचित सम्मान किया और एक स्थानीय कर्मचारी से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
१०७
पूछ-ताछ कर वाजपेयी जी के ठहरने के दिनों का प्रोग्राम ठीक कर दिया ।
साहब जी के पास से आने पर मैंने सोचा कि मुझे कोई खास काम तो करना नहीं है, चलो यहां के गलीकुचों की सैर करूँ और देखूं कि यहाँ कितनी अच्छाई है । घूमता- घूमता मैं एक ऐसे विभाग में पहुँचा, जहाँ एक-एक तरह के बहुत से मकानों की सीधी सीधी लम्बी लाइनें थीं। अगर एक लाइन में एक तरह के ऊँचे ऊँचे बहुतसे मकान थोड़ी दूर तक थे तो उसके ग्रागे दूसरी तरह के बहुत-से मकान बहुत दूर तक थे । फिर ऐसा भी देखा कि एक लाइन में एक तरह के मकान हैं और दूसरी लाइन में दूसरी तरह के । पूछने पर मालूम हुआ कि यह 'प्रेमनगर' है । इसी प्रेमनगर के बाहरी हिस्से को मोटर से देखता हुआ मैं गुज़रा था। फिर करीब करीब वैसा ही सिलसिला और वही सजावट मैंने 'स्वामीनगर' में भी
www.umaragyanbhandar.com