________________
११०.
.
..
सरस्वती ......
.
. [भाग ३८ :
+
+
R
KANERATORS FemaraEANING
DENPASOWANE aratorairaRICORKanya Aware
A
R.E.I.Dairy (Dayalbagh)
मैंने देखा है, क्योंकि स्काउट-कैंप के
है कि लड़के अगर चंचल होते हैं। लिए एक उपयुक्त जगह ढूँढ़ता-ढूँढ़ता
तो अक्सर वे बदमाश भी होते हैं। मैं एक दिन वहाँ पहुँच गया था।
अगर वे सीधे होते हैं तो उनमें से यहाँ भी बहुत प्रशंसनीय काम होता है।
डेयरी दयालबाग
बहुत-से बोदे होते हैं। पढ़नेवालों इन सब कारखानों में अच्छे से अच्छे कल-पुर्जे लगे हैं और में अच्छे खिलाड़ी और खिलाड़ियों में अच्छे पढ़नेवाले सबों में अच्छी-अच्छी चीज़ तैयार की जा रही हैं, लेकिन ये कम मिलते हैं। लेकिन दयालबाग़ में अधिकांश विद्यार्थी कारखाने और चीज़ दोनों ही बे-जान हैं। मेरी राय में सारा ऐसे हैं जो चंचल फिर भी सीधे, तगड़े फिर भी नम्र, दयालबाग एक कारखाना है, जिसमें दुनिया के काम के बहुत बोलनेवाले फिर भी सुशील हैं। खिलाड़ियों में लिए, उसके झंझटों और बखेड़ों से अच्छी तरह टकराने के भी अच्छी खासी संख्या ऐसों की है जो पढ़ने-लिखने लिए, दूसरों को और अपने-आपको सुखी बनाते हुए में भी जी लगाते हैं। एक खास तरह के शासन में संसार में अच्छी तरह रह सकने के लिए 'जानदार इन्सान' वे इस तरह मॅजे हुए हैं कि एक अपरिचित आदमी भी तैयार किये जा रहे हैं । इस कारखाने के चलानेवाले तीन सौ लड़कों से ड्रिल की हरकतें बात की बात में सिद्ध-हस्त शिल्पकार, कुशल कारीगर, साहब जी महाराज एक साथ करा सकता है और गाने के स्वर में भी हैं। यहाँ आत्मा की शक्ति विचार और भावों पर अपना सभी को एक साथ सम्मिलित कर सुरीला गाना गवा असर डाल रही है, और इस तरह यहाँ 'मनुष्य' तैयार सकता है। स्काउटिंग के काम में मुझे अक्सर बड़ी-बड़ी करने की कोशिश जारी है।
जमायतों को एक साथ ड्रिल कराने और कारस गवाने इस कोशिश की झलक यहाँ के कालेज और स्कूल के का मौका होता है। कहीं-कहीं तो तीन-चार दिनों में और लड़कों पर भी है । मैंने देश के अनेक विद्यालय देखे हैं । मैं कहीं इससे भी ज्यादा समय में ड्रिल में एक साथ हरकते तुलना करना नहीं चाहता, क्योंकि दयालबाग के विद्यार्थियों करा पाता हूँ, पर दयालबाग में अगर पहले दिन की पहली . पर अगर साहब जी महाराज का प्रभाव पड़ा है तो और- कोशिश में नहीं तो दूसरी में तो मैं सफल हो ही गया था।
और विद्यार्थियों पर कवीन्द्र रवीन्द्र, महात्मा हंसराज और जिस जगह को इन दिनों दयालबाग़ कहते हैं वह डाक्टर बेसंट अादि महानुभावों के उच्च जीवन की छाप बीस-बाइस साल पहले एक जंगली बयाबान था। आज पड़ी है। इसलिए तुलना बेकार है, लेकिन दयालबाग़ के वह शानदार इमारतों से सुशोभित, स्कूल-कालेज और
विद्यार्थियों में कछ विशेषतायें ज़रूर हैं, जो और साधारण फैक्टरियों से सुसजित, तार, बिजली, वायरलेस इत्यादि . स्कूल-कालेज के विद्यार्थियों में नहीं हैं। देखा गया सभ्यता की विभूतियों से सुसंपन्न, जीता-जागता दमदमाता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com