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सरस्वती
[भाग ३८
दियालबाग़ की इमारतों का एक विहङ्गम दृश्य
साहब जी महाराज के साथ मुझे तीन-चार बार देर इसी से उनके रचे दयालबारा में सर्वांग-संदरता दिखाई देर तक बातें करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । अगर कोई देती है।।
ख़ास काम न हुआ तो ज़रा चिन्ता-सी हो जाती है कि पहली जनवरी १९३६ का प्रभात था। मैं पिछले दिन | किस विषय पर बात-चीत की जाय । लेकिन साहब जी महा- आधी रात के समय पुराने साल को ताजमहल के चबूतरे
राज स्वयं ऐसे आदमी के पेट से धीरे-धीरे बहुत-सी बातें पर बिदा बोलकर, कुछ मित्रों के साथ मोटर में बैठ, | निकलवा लेते हैं। उनके साथ साधारण विषयों पर बातें भगवान् कृष्ण के जन्म स्थल मथुरा में नये साल का करते समय यह समझना कठिन होता है कि वे एक धर्म- स्वागत करने गया था। सुबह होते होते मैं दयालबाग गुरु भी हैं, क्योंकि सत्संग के चबूतरे पर विराजमान लौट आया। मुँह-हाथ धोकर मैं अपने मित्रों से मिलने होकर परमात्मा और जीवात्मा के प्रश्नों पर प्रकाश गया और उनसे सुना कि साहब जी महाराज को 'सर' । डालनेवाले, जटिल से जटिल आध्यात्मिक पचड़ों को की उपाधि मिली है। ख़ुशी हुई आश्चर्य हुआ। सोचा सुलझानेवाले, राधास्वामी-मत के वर्तमान नायक साहब कि क्या अब साहब जी महाराज, साहब जी महाराज जी महाराज दूसरे अवसरों पर कल-पुर्जे, खेती-सिंचाई, 'सर' आनंदस्वरूप के नाम से प्रसिद्ध होंगे, एक धर्म गुरु मज़दूर-कारख़ाने इत्यादि से सम्बन्ध रखनेवाले विषयों पर सांसारिक प्रभुता के अाभरण से आभूषित होंगे ! फिर भी एक अनुभवी संसारी की तरह बातें करते हुए अपनी सोचा कि इसमें आश्चर्य ही क्या है, साहब जी महाराज ऊँची-तुली राय दे सकते हैं। वे एकांगी नहीं हैं, और की यही तो विशेषता है। विलायत के महाकवि शेली Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara Surat
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