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दो मित्रों की एक कहानी
वह रो रहा था
लेखिका, कुमारी सुशीला पागा, बी० ए०
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IG थोड़ी देर के लिए, मुझे दे
NA ग ता पया अपनी कविता की पुस्तक किया, परन्तु इसके अतिरिक्त कि वह मामूली हैसियत का
5 थोड़ी देर के लिए मुझे दे युवक है, सीधे-सादे ढंग से रहता है, और कुछ न जान
। दो-कहते हुए नरेन्द्र ने सका। मुझे स्वयं एक-दो विचित्रतायें उसमें दिखीं। उसके क
कमरे के भीतर प्रवेश किया। वस्त्र बड़े ऊटपटाँग रहते। कभी वह पायजामा, कमीज़
मैं बैठा दाढ़ी बना रहा पहनता, कभी धोती-कुर्ता और कभी पैंट शर्ट । वह प्रायः था। सवेरे सवेरे उसकी इस अजायबघर का छुटा हुआ जानवर-सा लगता था, क्योंकि
बात को सुनकर मैं ज़रा अँझ- जो कपड़े पहनता था उनमें से एक भी उसे फिट नहीं • लाकर बोला-तुम तो मालूम होता है, रात में ही यह होता था। कोई बड़ा होता तो कोई छोटा और कोई ढीला निश्चय करके सो जाते हो कि प्रातःकाल उठकर कौन-सी तो कोई कसा । हमारे छात्रावास के साथी जो फैशन की पुस्तक माँगेंगे। जान पड़ता है, नाम लिखाने भर की फ़ीस सीमाअों को पार कर चुके थे, नरेन्द्र को इस दशा में कैसे दी है। यह नहीं सोचा था कि पुस्तकें भी ख़रीदनी होंगी। पसन्द करते ? जो भी हो, नरेन्द्र के प्रति मेरे हृदय में
मेरी बात का उत्तर दिये बिना ही नरेन्द्र मेरी ओर थोड़ा प्रेम और विश्वास था। छात्रावास भर में मैं ही निहारने लगा। मैंने आईने पर से अपनी दृष्टि हटाकर अकेला उसका मित्र था। मेरे और सहपाठी मुझसे कहतेउसकी ओर देखा। उसके नेत्र याचना कर रहे थे । संकेत "बड़े विचित्र हो । अजब घोंचू मित्र चुना है। तुम्हें क्या से उसे पुस्तक ले जाने को कहकर मैं फिर अपने कार्य में काल पड़ा था ? सिनेमा जाते हो, फैशनेबल हो, रुपयेवाले लग गया।
हो, तुम्हें एक से एक अच्छे पचासों मित्र मिल जायँगे । ___ अनायास ही ऐसे वचन मुख से निकल जाने के लिए प्रयत्न करके देखो।" मुझे थोड़ा-सा पश्चात्ताप हुअा। वह मेरा मित्र है, मैं सबकी सुनता और करता अपने मन की। उन सहपाठी है, क्या मुझ पर उसका इतना भी अधिकार नहीं लोगों के इस विरोध ने हमारा सम्बन्ध और भी घनिष्ठ कर है । खैर, मैंने हजामत समाप्त करके 'स्टेट्समैन' हाथ में दिया । मैं सोचता, नरेन्द्र मनुष्य है, उसके हृदय है। उठाया और आरामकुर्सी पर फैल गया, परन्तु पढ़ने इन्हीं बातों की तो संसार में श्रावश्यकता है। कोई वेशमें मन नहीं लगा। दो-चार पन्ने उलटकर मैंने 'स्टेट- भूषा को शहद लगाकर चाटा थोड़े ही करता है। छात्रासमैन' मेज़ पर पटक दिया और सोचने लगा कालेज वास के लड़के मेरी मुख-मुद्रा देखकर मानो मेरे विचारों तथा छात्रावास की बातें । मुझे छात्रावास में रहते अभी को पढ़ लेते थे। यही कारण था कि उनमें से बहुत-से केवल तीन ही महीने बीते थे । शुरू-शुरू में जब मैं छात्रा- नकचिढ़े तो मुझे सनकी तक कहने में श्रार न करते। वास में आया था, नरेन्द्र ने ही साहस करके मुझसे परिचय किया था। उसने कमरा ठीक करने में मेरी सहायता की हवा के झोंके की नाई और भी कुछ दिन अपनी
और मेरा परिचय भी दो-चार लड़कों से करा दिया। मेरी छाप जगत पर छोड़ते हुए निकल गये । जाड़ा प्रारम्भ हो पुस्तके भी उसी ने खरिदवाई थीं।
गया था। छमाही परीक्षा समीप होने के कारण लड़कों ___ कुछ दिन छात्रावास में बीत जाने पर मुझे पता लगा ने पढ़ाई प्रारम्भ कर दी थी। परन्तु नरेन्द्र बहुधा छात्राकि नरेन्द्र छात्रावास के उन लड़कों में से है जिन्हें लड़के वास से गायब रहता । मैं उसे पढ़ते कभी नहीं देखता था। अधिक मुँह नहीं लगाते। मैंने कारण जानने का प्रयत्न मेरे उन कुछ शब्दों ने उस दिन से उसे इतना प्रभावित
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