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सरस्वती
[ भाग ३८
क्या महायुद्ध छिड़ेगा
तीनों देश अवसर पाते ही अपने अपने भूभाग अपने इसमें सन्देह नहीं है कि जर्मनी अब योरप का प्रबल अपने राज्य में मिला लेने से कभी नहीं हिचकेंगे। इस राज्य हो गया है। वह निर्दयता के साथ बर्सेलीज़-सन्धि के कारण योरप का यह नया देश बड़े चक्कर में पड़ा हुआ है विरुद्ध आचरण कर रहा है, यही नहीं, वह अपने छीने और वह अपनी रक्षा के लिए फ्रांस और रूस का मुँह हुए उपनिवेश भी वापस मांग रहा है। इसके लिए उसने ताकते रहने को बाध्य रहा है। परन्तु आज पासा उलट यथासम्भव अपनी सैनिक तैयारी भी कर ली है। उसकी गया है। बर्लिन और रोम की गतिविधियों ने उसे अस्थिर शक्ति-वृद्धि को देखकर फ्रांस बुरी तरह डर गया है और कर दिया है। योरप के जो राज्य उससे मेल-जोल रखते थे वे भी लड़ाई इसकी अस्थिर नीति के कारण जुगोस्लेविया और छिड़ जाने की आशंका से फ्रांस के गुट से अलग हो जाने रूमानिया ज़ेचोस्लोवेकिया को सन्देह की दृष्टि से देख रहे
का प्रयत्न कर रहे हैं । बेल्जियम तक ने अगले युद्ध में हैं। वे उसे रूस का सहायक समझ रहे हैं । इधर रूमानिया निरपेक्ष रहने की घोषणा कर दी है। उधर बालकन-प्रायद्वीप रूस का विरोधी है। और जुगोस्लेविया ने तो आज तक के रूमानिया और जुगोस्लेविया भी फ्रांस से किनारा करते सोवियट रूस को नहीं स्वीकार किया है, यद्यपि वह स्लावों हुए दिखाई दे रहे हैं । इसका मूल कारण है राष्ट्र-संघ की का राज्य है। परन्तु स्लावों को अपने सजातीय और पहले नपुंसक नीति ।
के मित्र रूसियों का वर्गवाद एक क्षण के लिए भी स्वीकार यह सच है कि फ्रांस ने रूस से मैत्री कर ली है और नहीं है । उसकी यह वर्गवाद-विरोधी नीति जर्मनी एक बहुत बड़ी रकम देकर पोलेंड को भी अपने पक्ष में और इटली के अनुकूल है। फिर जर्मनी का व्यापार कर लिया है । परन्तु यदि जर्मनी से उसका युद्ध छिड़ गया जुगोस्लेविया में बहुत बढ़ गया है, जिससे उसका वहाँ तो उस दशा में फ्रांस का साथ कौन कौन देश देगा, काफी प्रभाव हो गया है। इस सम्बन्ध में कोई बात निश्चय-पूर्वक कहना बहुत इधर आस्ट्रिया में जर्मनी का जो विरोध था वह भी कठिन है।
क्षीण हो गया है । तथापि यह जानते हुए भी कि जर्मनी को देखिए न कि ज़ेचोस्लोवेकिया, जुगोस्लेविया और उसका राजतंत्रवाद रुचिकर नहीं है, आस्ट्रिया के भाग्यरूमानिया में इस बात के कारण मित्रता थी तथा अाज विधाता डाक्टर शुश्निग ने स्पष्टरूप से कह दिया है कि भी है कि उनके राज्य का क्षेत्रफल जैसे का तैसा बना आस्ट्रिया में राजतंत्र का आन्दोलन कानून-विरुद्ध नहीं है। रहे, इसके सिवा उनके राज्यों की वर्तमान सीमा की रक्षा यह सच है कि लघु मित्रदल ने यह घोषित किया । का आश्वासन उन्हें फ्रांस ने भी बराबर दिया है। परन्तु है कि यदि जर्मनी आस्ट्रिया को हड़पने का प्रयत्न करेगा अब फ्रांस जर्मनी और इटली के आगे पीछे पड़ गया और ब्रिटेन, फ्रांस और इटली उसका विरोध करेंगे तो वह है, अतएव इन राज्यों को आपत्ति के समय फ्रांस की भी उनका साथ देगा । परन्तु यदि आस्ट्रिया या हंगेरी अपने सहायता का भरोसा नहीं रहा । वर्तमान राजनैतिक यहाँ राजतंत्र की स्थापना करेगा तो वह स्वयं उसका सशस्त्र परिस्थिति के कारण ज़ेचोस्लोवेकिया तो बिलकुल विरोध करेगा। रूस और जर्मन के संघर्ष के बीच में पड़ गया है। ऐसी इस परिस्थिति में कोई कैसे कह सकता है कि युद्ध दशा में वह अपनी रक्षा के विचार से धीरे धीरे इटली छिड़ जाने पर कौन किसका साथ देगा। की अोर झुक रहा है । इस दशा में उसकी आस्ट्रिया इधर तो राजनैतिक परिस्थिति ऐसी अस्तव्यस्त है,
और हंगेरी से अधिक घनिष्ठता हो जायगी। और उधर योरप के राष्ट्रों का सामरिक बल दिन दिन बढ़ता जा ऐसा होने पर जर्मनी का विरोध-भाव कम पड़ जायगा। रहा है । राष्ट्रसंघ ने एक विवरण छपाया है, जिससे प्रकट परन्तु ऐसा कहाँ तक सम्भव होगा, यह समझना कठिन होता है कि संसार के ६. देशों में से ५० के है, क्योंकि ज़ेचोस्लोवेकिया की रचना हंगेरी, श्रास्ट्रिया सेना हो गई है। और जर्मनी के प्रदेशों को मिलाकर ही हुई है और ये संसार की सारी स्थायी सेनाओं में (अर्द्ध-सैनिक दलों
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