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सरस्वती
[भाग ३८
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हो ?” उसने मूर्त का बाज़ पकड़कर अपनी ओर खींचते दूसरे दिन सिपाही मुझे राणा साहब के आगे पेश हुए कहा।
करने को लेने आये, पर मुझसे तो उठा तक न जाता मेरी आँखों में खून उतर आया। मैंने कड़ककर था। तीन दिन तक इसी नरक में पड़ा रहा । फिर क्यार कहा-"इसे हाथ मत लगायो।"
कोटी ले गये । वहाँ तनिक आराम आने पर मेरा मामला "क्यों तुम्हारे बाप की क्या लगती है ?"
पेश हुआ। मुझ पर मेले से एक स्त्री को भगाने का प्रयास "मेरी मँगेतर है।"
करने और बावर्दी सिपाहियों को उनके कर्तव्य से रोकने "चल मँगेतर के साले । जरा राणा के पास चल। तथा पीटने का अभियोग लगाया गया। शिकायत कर सब पता लग जायगा कि यह तेरी मँगेतर है या अाशना। वाला ही निर्णायक था। मुझे डेढ साल की कैद की सजा यहाँ मेला देखने आते हो या बदमाशी करने।" यह कहते मिली। मेरे भाई के सब उद्योग-सब मिन्नते वृथा गई। कहते उसने वासनायुक्त दृष्टि मत पर डाली। वह खडी वे मुझसे मिलने तक न पाये। थरथर काँप रही थी। क्रोध के मारे मेरी भुजायें फड़कने चौकीदार ने दीर्घ निःश्वास छोड़कर कहा-इस डेढ़ लगीं। मैंने एक हाथ से मूर्त को उसके पंजे से छुड़ाया वर्ष में मैंने जो कष्ट उठाये वे अनिर्वचनीय हैं। यह
और दूसरे से एक ज़ोर का थप्पड़ उसके मुँह पर रसीद समझ लो कि जब मैं डेढ़ साल के बाद अपने गाँव पहुंचा किया। उसने मुझे गाली दी और हंटर से प्रहार किया तब मेरा सगा भाई भी मुझे नहीं पहचान सका। मैं कदाचित्
और सीटी बजाई। मुझे क्रोध तो आया हुआ था ही। डेढ़ साल बाद भी वहाँ से छुटकारा न पाता, यदि वह मैंने हंटर उसके हाथ से छीनकर दूर खड्ड में फेंक दिया दारोगा वहाँ से रियासत के किसी दूसरे भाग में न बदल
और कमर से पकड़कर उसे धरती पर दे मारा। . जाता। गाँव में आने पर मुझे ज्ञात हुआ कि मूर्त भी ___एक चीख़ और बीसियों लोग उधर दौड़े हुए आये। उस मेले से नहीं लौटी । वह अवश्य हो उस दारोगा वा
श्रागे अागे कई सिपाही थे । आते ही उन्होंने मुझ पर दूसरे कर्मचारियों की पापवासनाओं का शिकार बनी होगी। हंटरों की वर्षा कर दी। मेरा युवा हृदय भी विह्वल हो इस बात का मुझे पूरा निश्चय था और मेरा यह सन्देह उठा, उत्तेजित हो उठा । यों चुपके से पराजय स्वीकार कर सत्य भी साबित हुआ, जब एक साल पश्चात्, स्वस्थ लेना उसे मंज़र न था। मैंने हमला करनेवालों में से एक होने के बाद , लाहौर जाने पर मैंने धोची-मंडी में मूर्त के को पकड़ लिया और प्रहारों की परवा न करते हुए उसे दर्शन किये। वह एक बहुत छोटे-से घिनौने मकान में खड्ड में ढकेल दिया। फिर एक दूसरे की नारी बाई । उसे रहती थी। मैं उसके पास कई घंटे तक बैठा रहा । उसने भी खड्ड में गिरा दिया। सिपाहियों ने सहायता के लिए मुझे अपनी मर्मस्पर्शी कहानी सुनाई। किस भाँति उसकी सीटियाँ बजा दीं। और लोग आ गये । मुझ पर चारों सुन्दरता पर मुग्ध होकर दारोगा अथवा दूसरे कर्मचारियों
ओर से प्रहार होने लगे । मेरे शरीर से रक्त बह निकला। ने उस पर अनर्थ तोड़े और किस प्रकार अपने अत्याचारों फिर भी मैं उस समय तक लड़ता गया, जब तक बेहोश का भण्डाफोड़ होने के भय से उन्होंने उसे छोड़ दिया। नहीं हो गया।
अपने सतीत्व को लुटाकर वह किस प्रकार अपने गाँव
में जाने का साहस न कर सकी और किस प्रकार पेट की ____ जब होश आया तब अपने आपको नीचे की हवालात ज्वाला ने उसे धोबी-मंडी में आ बसने को बाध्य किया। में पड़े पाया। इस अँधेरे और एकान्त में मेरा दम घुटने चौकीदार की आवाज़ भरी गई। वह कहने लगालगा। मूर्त के साथ क्या बीती, इस विचार ने मेरे मन यह कहते कहते गोविन्द, वह रो पड़ी। मैं भी रोने लगा ! को अधीर कर दिया। भूत में क्या हुश्रा और भविष्य में मैंने उसे अपने साथ चलने को कहा, पर वह राजी नहीं क्या होगा, इन विचारों ने मेरे मस्तिष्क को घेर लिया। हुई । अाते समय उसने मेरे सामने एक रेशमी रूमाल रख मेरा अंग अंग दुख रहा था, परन्तु मुझे अपने दुख की दिया और रोती हुई बोलीअधिक चिन्ता न थी.। दुख था तो मूर्त की जुदाई का। "अाज तीन साल से मैंने इसे सँभाल कर रक्खा है ।
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