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सरस्वती
१ - ऋग्वेद संहिता - बनैलीराज्य के अधिपति श्रीमान् कुमार कृष्णानन्दजी ने एक लाख रुपया लगाकर 'गंगा' नाम की एक उच्च कोटि की मासिक पत्रिका और 'वैदिकपुस्तक - माला' को जन्म दिया था । 'गङ्गा' तो चार वर्ष चलकर बन्द हो गई पर 'वैदिक पुस्तक -माला' का काम जारी है और हाल में उसके प्रथम पुष्प ॠग्वेद संहिता का अन्तिम खण्ड भी छुपकर प्रकाशित हो गया। इस प्रकार कोई तीन वर्ष के भीतर ऋग्वेद संहिता कई खंडों में छपकर प्रकाशित हो गई । इसके हिन्दी भाष्यकार पंडित रामगोविन्द त्रिवेदी और पंडित गौरीनाथ झा हैं। इस संस्करण के ऋग्वेद का मूल्य १६ ) है । हिन्दी भाष्य सहित ॠग्वेद का पहला संस्करण जो इतने कम मूल्य में प्रकाशित किया गया है । यह संस्करण साधारण लोगों के लिए इतना अधिक सस्ता ही नहीं है, किन्तु इसका भाष्य भी सायण के भाष्य का मथितार्थ है । ऐसी दशा में वेद के प्रेमियों को इस संस्करण का अवश्य संग्रह करना चाहिए । वेद हिन्दुओं की परम निधि है । संस्कृत में होने के कारण वे जनता से दूर हो गये हैं । इसलिए इस बात की बहुत बड़ी ज़रूरत है कि कम से कम ॠग्वेद का एक हिन्दी-संस्करण सस्ते से सस्ता निकाला जाय । अच्छा होता 'वैदिक पुस्तक - माला' केवल अपने हिन्दी अनुवाद को 'हिन्दी ॠग्वेद' के रूप में प्रकाशित करती । ऋग्वेद संहिता के इस संस्करण के निकालने के लिए इसके प्रकाशक वास्तव में बधाई के पात्र हैं।
२-४ - श्री भारत-धर्म महामण्डल की तीन पुस्तकें
(१) मार्कण्डेयपुराण - भारत-धर्म-मण्डल का प्रकाशन विभाग १८ महापुराणों को हिन्दी में प्रकाशित करना चहता है । इस सिलसिले में उसने सबसे पहले मार्कण्डेयपुराण का प्रकाशित किया है । व्यास-प्रणीत १८ पुराणों में मार्कण्डेयपुराण एक विशिष्ट पुराण है । आकार में यह छोटा है और इसकी श्लोक संख्या कुल नौ हज़ार है । ास्तिक हिन्दुत्रों का परममान्य 'सप्तशतीस्तोत्र' इसी पुराण से निकला है । इसी का यह हिन्दीभाषान्तर है । भाषान्तर की भाषा संस्कृत-गर्भित है, तथापि श्राशय समझने में विशेष कठिनाई नहीं होती । अच्छा होता यदि अनुवाद की भाषा सरल ही नहीं अति सरल होती । स्थल स्थल पर
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[ भाग ३८
जो पाण्डित्य - पूर्ण टिप्पणियाँ दी गई हैं उनसे पुराण के रहस्यों पर सनातन धर्म के दृष्टिकोण से अच्छा प्रकाश डाला गया है । ये टिप्पणियाँ भारत धर्म महामण्डल के पूज्यपाद श्री स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज ने लिखवाई हैं । इन टिप्पणियों के कारण यह हिन्दीमार्कण्डेयपुराण अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है । पुराणप्रेमियों को इस संस्करण का संग्रह करना चाहिए। यह तीन खण्डों में प्रकाशित हुआ है । इसकी पृष्ठ संख्या ४७४ और तीनों खण्डों का मूल्य ३) है ।
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) भारतवर्ष का इतिवृत्त -- यह एक अनोखी पुस्तक है । इसमें भारतवर्ष अर्थात् भू-मण्डल तथा भारतअर्थात् हिन्दुस्तान का भेद स्पष्ट करते हुए देश और काल के पौराणिक दृष्टिकोण से जो विवेचना की गई है। वह निस्सन्देह पाण्डित्य-पूर्ण है और इन विषयों के विशेषज्ञों के विचार के लिए एक नई विचार - सरणि उपस्थित करती है । यह ग्रन्थ १२ अध्यायों में विभक्त है । पहले अध्याय में ब्रह्माण्ड और भारतवर्ष का सम्बन्ध बतलाया गया है, दूसरे अध्याय में ब्रह्माण्ड के मानचित्र का विवरण दिया गया है, तीसरे अध्याय में भारत - द्वीप को जगद्गुरु सिद्ध किया गया। चौथे अध्याय में आर्यों की काल-गणना का परिचय दिया गया है, पाँचवें में मनुष्यसृष्टि और वर्णाश्रमबन्ध का विवेचन किया गया है। छठे में भारत - द्वीप का सामाजिक संगठन, सातवें में वेद और शास्त्रों की महिमा का वर्णन, आठवें में भारत द्वीप के धर्म, नवें में राज्यशासन व्यवस्था, दसवें में शिक्षा-प्रणाली, ग्यारहवें में रामायणकालीन संस्कृति और बारहवें में महाभारतकालीन संस्कृति का दिग्दर्शन कराया गया है। यह इसका भी पहला ही खण्ड है । इसकी पृष्ठ संख्या ३८० और मूल्य २) है ।
(३) सप्तशती - यह सप्तशती का संस्करण अधिक उपयोगी है । यह संस्कृतटीका और हिन्दी अनुवाद के सहित है। इसके सिवा कवच आदि स्तोत्र एंव सूक्त और आवश्यक न्यास आदि भी दे दिये गये हैं । श्रतएव इससे नित्य के पाठ आदि का भी काम निकल सकता और इस महत्त्वपूर्ण स्तोत्र के अध्ययन और परिशीलन का भी । इस लिए यह संस्करण अनूठा ही है । हिन्दीवालों के लिए सप्तशती का यह संस्करण प्रत्युपयोगी है । सप्तशती-प्रेमियों
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