Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचास्तिकाय प्राभृत ऐसा संकल्प-विकल्पका लक्षण जानना चाहिये । यहाँ कोई कहे कि वीतराग निर्विकल्पसमाधिमें वीतराग का विशेषण निरर्थक है उसका समाधान करते हैं कि वीतराग विशेषण नीचे लिखे कारणोंसे निरर्थक नहीं है। एक तो इससे यह बताया है कि आर्त या रौद्रध्यानरूप जो विषय कषायके निमित्त अशुभ ध्यान हैं उनका यहाँ निषेध है। दूसरे इससे हेतु व हेतुमद्भावका कथन किया गया। तीसरे कर्मधारय समास है। चौथे भावनाके ग्रन्थमें पुनरुक्त दोषको नहीं गिनते हैं। पांचवे स्वरूपका विशेषण है। छठे दृढ करने का अभिप्राय है। ऐसा जहाँ कही वीतराग निर्विकल्पसमाधिका व्याख्यान हो, वहाँ यही भाव सर्व स्थानोंमें जानना चाहिये । यदि वीतराग सर्वज्ञ निर्दोष परमात्मा शब्द ऐसे ही और शब्द कही आवें और कोई ऐसा ही पूर्व पक्ष करे तो उसका समाधान इसी तरह करना योग्य है । हेतुहेतुमद् भावका यह अर्थ है कि जिस कारणसे वीतराग है उस ही कारण से निर्विकल्प समाधि है ।।७।।
इस तरह संकर व्यतिकर दोषको हटाते हुए गाथा पूर्ण हुई। इस तरह स्वतंत्र दो गाथाओंसे तीसरा स्थल पूर्ण हुआ। इस तरह पहले महाअधिकारमें सात गाथाओंके द्वारा व तीन स्थलोंसे समय शब्दके अर्थकी पीठिकाका विधानरूप प्रथम अधिकार पूर्ण हुआ। ____ आगे 'सत्ता सव्वपयत्था' इस गाथाको आदि लेकर चौदह गाथाओं तक पाठक्रमसे जीव पुद्गलादि द्रव्योंकी विवक्षा न करके सामान्य द्रव्यकी पीठिका की जाती है। इन १४ गाथाओंके मध्यमें सामान्य व विशेष सत्ताका लक्षण कहते हुए 'सत्ता सव्यपयस्था' इत्यादि प्रथम स्थलमें गाथा सूत्र एक है फिर सत्ता और द्रव्यका अभेद है व द्रव्यशब्दकी कथनकी मुख्यता से 'दवियदि इत्यादि दूसरे सीलमें सूत्र एक है। फिर द्रव्यके तीन लक्षण कहते हुए 'दव्वं सल्लक्खणीयं 'इत्यादि तीसरे स्थलमें सूत्र एक है । फिर दो लक्षण कहते हुए 'उप्पत्तीय विणासो' इत्यादि सूत्र एक है । फिर तीसरा लक्षण कहते हुए 'पज्जय रहिय' इत्यादि गाथा दो हैं इस तरह समुदायसे तीन गाथाओं के द्वारा द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक परस्पर अपेक्षा सहित दोनों नयोंके समर्थनकी मुख्यतासे चौथा स्थल है। पांचवें स्थलमें सर्व एकान्त मतोंके निराकरणके लिये प्रमाण सप्तभंगीके व्याख्यानकी मुख्यतासे "सिय अत्थि" इत्यादि सूत्र एक है। इस तरह चौदह गाथाओंमें पांच स्थलके समुदायसे पहली सात गाथाएँ हैं । फिर दूसरे सप्तकके मध्यमें पहले स्थलमें बौद्धमतका एकान्त हटाते हुए द्रव्यके स्थापनकी मुख्यता से "भावस्स णत्थि णासो" इत्यादि अधिकरकी गाथा सूत्र एक है । फिर इसी का विस्तार करनेके लिये चार गथाएँ है । इन चार गाथाओके मध्यमें उसी ही अधिकार सूत्रके द्रव्यगुणपर्यायके व्याख्यानकी मुख्यतासे 'भावा जीवादीया' इत्यादि