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त्रसरेणुभिरष्टाभिरेकः स्याद्रथ रेणुकः । अष्टभिस्तैर्भवेदेकं केशाग्रं कुरू युग्मिनाम् ॥२६॥ ततोऽष्टघ्नं हरिवर्ष रम्यक क्षेत्रभूस्पृशाम् । ततोऽष्टघ्नं हैमवत हैरण्यवत युग्मिनाम् ॥२७॥ तस्मादष्ट गुणस्थूलं वालस्याग्रमुदीरितम् । पूर्वापर विदेहेषु नृणां क्षेत्रानुभावतः ॥ २८॥ स्थूलमष्ट गुणं चास्माद्भर तैरवताङ्गिनाम् । अष्टभिस्तैश्च वाला ग्रैर्लिक्षामानं भवेदिह ॥ २६ ॥ लिक्षाष्टकमितायुका भवेद्यूकाभिरष्टभिः । यवमध्यं ततोऽष्टाभिस्तैः स्यादुत्सेधमंगलम् ॥३०॥ १ - उत्सेध अंगुल - सूक्ष्म और व्यवहारिक दो प्रकार के परमाणु होते हैं। अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं का एक व्यवहारिक परमाणु होता है। वह भी इतना सूक्ष्म होता है कि उसके तीव्र शस्त्र द्वारा भी दो टुकड़े नहीं हो सकते हैं । श्री जिनेश्वर भगवान् ने इस परमाणु को माप में सब से पहला माप कहा है और यह व्यवहार नय से ही परमाणु कहलाता है । निश्चय नय से अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं वाला वह एक स्कंध कहलाता है । अनन्त व्यवहारिक परमाणुओं की एक 'उत्श्लक्ष्णलक्ष्णिका' होती है। आठ 'उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं की एक 'श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका' होता है (ऐसा अभिप्राय भगवती सूत्र जीव समास आदि का है) । आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक 'उर्ध्वरेणु' होता है। आठ उर्ध्वरेणु का एक 'त्रसरेणु' होता है। आठ त्रसरेणु का एक 'रथरेणु' होता है, आठ रथरेणु का कुरुक्षेत्र के युगलियों का एक 'केशाग्र' होता है, इस तरह आठ केशाग्रों का एक हरिवर्ष और आठ हरिवर्ष क्षेत्र एक रम्यक क्षेत्र के युगलियाओं का एक केशाग्र भाग होता है । इस तरह आठ केशाग्रों का हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों के युगलियाओं का एक केशाग्र होता है और ऐसे आठ केशाग्रों का पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह के मनुष्यों का एक केशाग्र होता है। इस तरह आठ गुणा स्थूल भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों का एक केशाग्र होता है इस प्रकार आठ केशाग्रों के द्वारा एक 'लीख' का मान होता है (यही बात संग्रहणी वृहद्वृत्ति तथा प्रवचन सारोद्धार वृत्ति आदि में आयी है)।'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की वृत्ति आदि में तो इस तरह कहा है कि - पूर्व पश्चिम विदेह के मनुष्य के आठ केशाग्रों द्वारा ही एक 'लीख' का माप होता है । हरिवर्ष, रम्यक, हैमवत, हैरण्यवत, पूर्व विदेह, पश्चिम विदेह, भरत क्षेत्र और ऐरावत