________________ ( 15 ) (अस्मादह्नः) पञ्चमी के अर्थ को सूचित करता है। [देखिये कुमारसम्भव (अंक 5) अद्य प्रभृत्यवनताङ्गि तवास्मि दासः] दूसरे प्रकार में दिये गये तीनों वाक्यों में बहुत थोड़ा ही वक्तव्य है / 'अद्य षष्ठे मासे' इत्यादि में सप्तमी भावलक्षणा है, जिसका अर्थ 'षष्ठे मासे गते सति' इस प्रकार से लिया जा सकता है। तीसरे प्रकार में 'इतः' यह पञ्चम्यर्थ में प्रयुक्त हुआ है। पञ्चमी का प्रयोग “यतश्चाध्वकालनिर्माणम्'-इस वचन के अनुसार हुप्रा है / 'षट्सु मासेषु' इत्यादि में सप्तमी का प्रयोग "कालात्सप्तमी"-इस वचन के अनुसार हुआ है। इस प्रकार की रचना में शाबर भाष्य प्रमाण है-'प्रतीयते हि गव्यादिभ्यः सास्नादिमानर्थः। तस्मादितो वर्षशतेऽप्यस्यार्थस्य सम्बन्ध आसीदेव, ततः परेण ततश्च परतरेणेत्यनादिता'। उपर्युक्त तीनों प्रकार की रचनाएं संस्कृत व्यवहारानुकूल हैं। इन तीनों रचनाओं में से पहली रचना पञ्जाबी मुहावरे के भी अनुकूल है। इन विशुद्ध रचनाओं में से वह रचना जो षष्ठ्यन्त क्तान्तवाली है, वह क्रिया को क्रिया से व्याप्त समय की अपेक्षा गुणीभूत कर देती है। हम यहाँ मुख्यतया किसी क्रिया के समय के विषय में कहते हैं न कि क्रिया के विषय में / इसलिए जब समय की अपेक्षा क्रिया की प्रधानता दिखलानी हो, तो दूसरी या तीसरी रचना का आश्रय लेना चाहिए। क्योंकि 'वाक्यार्थः क्रिया' अर्थात् वाक्यमात्र का एक सामान्य अर्थ किया है / अतः पहले प्रकार के वाक्यों का यही अर्थ है कि अमुक घटना को हुए इतना समय व्यतीत हो चुका है इत्यादि, तथा दूसरे व तीसरे प्रकार के वाक्यों का अर्थ इस प्रकार है कि कार्य इतने समय पूर्व हुआ। उपर्युक्त तीनों वाक्यों के अर्थ को कहने का एक और प्रकार भी हो सकता है / 'इतः षड्भिर्मासैः पूर्व भूरकम्पत, इतो वर्षसहस्रण पूर्व महमूदो भरतभुवमाचक्राम / इतः सप्ताहद्वयेन पूर्व धारासारैरवर्षद् देवः / ' इन वाक्यों में तृतीया का प्रयोग कार्य की पूर्वता की सीमा को सूचित करता है (अवच्छेदकत्वं तृतीयाया अर्थः) संस्कृत व्याकरण में मासपूर्वः, वर्षपूर्वः, इत्याति समासों की अनुमति दी गई है (अष्टाध्यायी 2 // 1 // 31 // ) इसके साथ ही मासेन पूर्वः (महीना भर पहले का) वर्षेण पूर्वः, आदि व्यस्त प्रयोगों को भी निर्दोष माना गया है / यदि हम 'मासेन पूर्वः' (एक महीना पूर्व का) कह सकते हैं तो क्या कारण