________________ ल्लिङ्ग' कहते हैं / ये प्रायः एक वचन+में प्रयुक्त होते हैं। १-परनिन्दा मा स्म कुरुत, निन्दा हि पापं भवतीति गुरुचरणाः / यहाँ 'पूज्या गुरवः' के स्थान में 'गुरुचरणाः' कहना व्यवहार के अधिक अनुकूल है / इसके पीछे क्रियापद को छोड़ना ही शोभाधायक है। २-रामः श्रेण्या रत्नं कुलस्य चावतंसः / रत्न नित्य ( नपु) और अवतंस नित्य पु. है / यहाँ 'स्वस्याः श्रेण्याः , स्वस्य कुलस्य'कहना व्यर्थ है / प्रायः अपने अर्थ में 'स्व' का परिहार करना चाहिये, विशेष कर सम्बन्धि शब्दों के साथ / मातरं नमति, न कि स्वां मातरं नमति / ३-'ते सर्वेषां मङ्गलानां निकेतनं सन्ति, जगतश्च प्रतिष्ठा / ' ऐसे स्थलोंमें क्रियापद उद्देश्य के अनुसार होता है। ४–पाण्डवाः प्रथमे (पूर्व ) वयस्येव कुरूणां शङ्कास्थानं बभूवुः / ' यहाँ भी उद्देश्य की कर्तृता मानकर उसके अनुसार ही क्रियापद बहुवचन में प्रयुक्त हुआ है। 'कुरूणाम्' के स्थान में 'कौरवाणाम्' कहना अशुद्ध होगा, ऐसे ही 'कौरव्याणाम्' भी। १०-वह आदर्श शासक है= स प्रादर्शः शासकानाम् ( शासितृ णाम् ) / 'आदर्शशासकः' नहीं कह सकते / आदर्श नाम दर्पण का है ।१५---'ऐक्ष्वाक पाहतलक्षणः ककुत्स्थो नाम नृपतिनृपतीनां ककुदं बभूव / ' अभ्यास-७ ( अजहल्लिङ्ग विधेय) १-मिथिलानरेश की बेटी',कन्याओं में रत्न', रूपवती सीता के स्वयंवर में नाना दिशाओं और देशों से राजा आये / २-रानी धारिणी को उसके भाई सीमा-रक्षक वीरसेन ने मालविका भेंट रूप में ( उपायनम् ) भेज दी। ३-यह अंगूठी राजा की ओर से भेंट ( प्रतिग्रहः ) है, इसे उचित प्रादर से ग्रहण कीजिये। ४-कौन सी कला या विज्ञान बुद्धिमान् उद्योगी पुरुष की पहुँच से परे (अविषयः) है / ५-ऋषियों की प्रतिभा-दृष्टि से कौन सा पदार्थ परे है / वे तो दूर, पर्दे के पीछे छिपे हुए पदार्थों को भी हस्तामलकवत् देख लेते हैं। ६-उनका तो क्या ही कहना, वे तो विद्या के निधि (निधानम् ) और गुणों की खान ( आकरः ) हैं। ७-राम मेरा प्यारा पुत्र (पुत्रभाण्डम् ) है, अतः सीतानिर्वासन-रूप महापराध करने पर भी मैं उसे दण्ड +भाजन, पात्र, पद आदि शब्द कभी 2 बहुवचन में प्रयुक्त होते हैंभवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम् ( कादम्बरी ) / 1-1 मैथिलस्य / २-२-'कन्यारत्नस्य, कन्याललामस्य / ललाम ( नपु० )=प्रधान / यह नान्त भी है-'कन्याललाम कमनीयमजस्य लिप्सोः ' ( रघु० ) / ३-अंगुलीयक-नपु / ऊमिका-स्त्री० /