________________ ( 12 ) देता है, हजारों तारे नहीं। ११-वह गुणों का घर ( अगारम् ) होता हुआ भी नम्र है। १२-दो महीनों की एक ऋतु होती है और छः ऋतुओं का एक वर्ष / १३-जिस समाज में मूर्ख प्रधान होते हैं और पण्डित गौण, वह चिर तक नहीं रह सकता। १४-*सोना खदिर के धधकते हुए कोयलो के सदृश दो कुण्डल बन जाता है। १५-यह होनहार ब्राह्मणी है, इसने छ: मास के भीतर सारा अमरकोष कण्ठस्थ कर लिया है। संकेत-२-आम्नायेऽधीतिनी ( अधीतवेदा ) सा राजकुमार्यात्मानं कृतिनी मन्यते / युक्ता खल्वस्या आत्मनि संभावना। यहाँ 'आत्मन्' शब्द के नित्यपुल्लिङ्ग होने पर भी 'कृतिन्' विधेय स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त हुआ है। इस ने उद्देश्य 'सा' के लिङ्ग को लिया है। ३-परिच्छेदातीत: परमेश्वरस्य महिमा, अतो वाङ्मनसयोरगोचरः / यहाँ वाक् च मनश्चेति 'वाङ्मनसे' ऐसा द्वन्द्व होता है। ७-वयं देवतानि शरणं यामो नित्यं च तानि ध्यायामः / 'शरण' रक्षिता अर्थ में नपु० एक वचन में ही प्रयुक्त होता है / ६--गोविन्दो मम मूत्तिसंचरा: प्राणा: सर्वस्वं च / जीवन अर्थ में 'प्राण' नित्य बहुवचनान्त है / १२-द्वौ द्वौ मासावृतुर्भवति, षडऋतवश्च वर्षम्भवति / यहाँ विधेय के अनुसार क्रियापद का वचन हुप्रा है। इसके लिये विषयप्रवेश देखो। १३–यत्र समाजे मुर्खा: प्रधानमुपसर्जनं च पण्डिता: स चिरं नावतिष्ठते / १४-द्रव्यमियं ब्राह्मणी / एनया......कण्ठे कृतः / 'द्रव्यं च भव्ये' ( 5 / 3 / 104 ) सूत्र में प्राचार्य द्रव्य शब्द का भव्य अर्थ में निपातन करते हैं / भव्य = होनहार / 'द्रव्यं भव्ये गुणाश्रये' यह अमर में भी पाठ है। अभ्यास-8 ( क्रियाविशेषण ) १-आप आराम से (सुखम्, साधु ) बेठे, तपोवन तो अतिथियों का अपना घर होता है / २-बुढ़िया धीरे 2 ( मन्दम्, मन्दमन्दम्, मन्थरम् ) चलती है, बेचारी दुःखों से सूखकर पिंजर हो गई है। ३-बुद्धिमान् पदार्थों को ध्यान से (निपुणम् ) देखते हैं और अच्छे बुरे में विवेक करके कार्य में 1 'क्यङमानिनोच' इस सूत्र की व्याख्या में काशिका का 'या त्वात्मानं दर्शनीयां मन्यते तत्र पूर्वेणैव सिद्धम्' यह वचन प्रमाण है / पर अन्यत्र साहित्य में 'मात्मन्' में अन्वित हुए विशेषण व विधेय पुल्लिङ्ग देखे जाते हैं। काशिका का पाठ सिद्धान्तकौमुदी में भी जेसा का तेसा मिलता है।