________________ ( 13 ) प्रवृत्त होते हैं / ४–वह मधुर (मधुरम्) गाता है / जी चाहता है उसे बार 2 मुनें / ५-वह कठोर ( परुषम्, कर्कशम् ) बोलता है, पर हृदय से सभी का शुभ ही चाहता है / ६–वह आज लगातार (निरन्तरम्, सन्ततम्, अविरतम्, अनारतम् ) पढ़ता रहा, अतः खूब (बाढम्, दृढम् ) थक गया है / 7* जो पापी होता हुआ भी मुझे अनन्य भक्त होकर भजने लगता है वह शीघ्र (क्षिप्रम् ) धर्मात्मा बन जाता है। ८-आप विश्वास कीजिये, मैंने यह अपराध जानबूझ कर(मत्या बुद्धिपूर्वम् अभिसन्धिपूर्णम्)नहीं किया।६-गरमी की ऋतु है, मध्याह्न समय है, सूर्य बहुत तेज (तीक्षणम्)चमक रहा है / १०-विना इच्छा ( अमत्या, अनभिसन्धि ) किये हुए पाप के लिये शास्त्र बड़ा दण्ड विधान नहीं करते, क्योंकि संकल्प ही कार्य को अच्छा या बुरा बनाता है / ११-धीर पुरुषों का चरित्र बहुत ही (अतिमात्रम्, अभ्यधिकम्) प्रशंसनीय है। वे प्राणों का संकट होने पर भी न्याय के मार्ग से एक पग भी नहीं डिगते / १२-आज सभा में वसुमित्र देशभक्ति के विषय पर विस्तार और स्पष्टता से बोला / सभी ने इसके व्याख्यान को पसन्द किया। १३--वह छिपी हुई मुस्कराहट से बोला, क्या बात है प्राज तो आप बड़ी बुद्धिमत्ता की बातें करते हैं / संकेत-इस अभ्यास में क्रिया-विशेषरणों के प्रयोग का यथार्थ बोध कराना इष्ट है / क्रिया-विशेषण नपुसक लिंग की द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्रयुक्त होते हैं, जैसे-(१) सुखमास्ताम्, भवान् तपोवनं ह्यतिथिजनस्य स्वं गेहम् / २मन्थरं याति जरती। तपस्विनीयं कृच्छ्रक्षामाऽस्थिपञ्जरः संवृत्ता। १२-अद्य वसुमित्रः सभायां देशभक्तिविषयं सविस्तरं विशदं च व्याख्यत् / चक्षिङ का नुङ् में रूप है / यहाँ 'सविस्तारम्' नहीं कह सकते / विस्तार (पु. ) चीजों की चौड़ाई को कहते हैं। १३-सोन्तर्लीनमवहस्याब्रवीत्-अद्य तु प्रज्ञावादाभाषसे, किमेतत् / 'अव' क्रिया की अपरिपूर्णता को कहता है,प्रतः अव-हस का अर्थ मुस्कराना हुप्रा / अभ्यास-१० ( क्रियाविशेषण ) १-यह नदी विना शब्द किये (प्रशब्दम्)बहती है। यह गहरी है और .1-1 प्रारणात्ययेऽपि / 2-2 न्याय्यात् पथः / 3 न व्यतियन्ति, न विचलन्ति / 4-4 अभ्यनन्दन् / 5 नदी, तटिनी, तरङ्गिणी, वाहिनी-स्त्री० /