________________ ( 11 ) देना नहीं चाहता / ८-राम मानो क्षात्र धर्म है, जिसने वेद-निधि की रक्षा के लिये प्राकार धारण किया है। ६-*कोरी नीति कायरता है और कोरी वीरता जंगली जानवरों की चेष्टा से बढ़कर नहीं / १०-सच पूछो तो वह शरीरधारी अनुग्रह का भाव है। जो भी उसके द्वार पर गया, खाली हाथ नहीं लौटा। ___ संकेत-२-अन्तपालेन भ्रात्रा वीरसेनेन देव्य धारिण्ये मालविकोपायनं प्रषिता / यहाँ भी उद्देश्य मालविका (उक्तकर्म) के अनुसार ही क्तान्त प्रेषिता स्त्रीलिङ्ग हुआ है। 'तस्या भ्रात्रा' कहना व्यर्थ है। ऐसा कहने की शैली नहीं। ४-का कला विज्ञानं वा मतिमतो व्यवसायिनोऽविषयः / 'अविषयः' तत्पुरुष है। ५-कि नाम सत्त्वम् ऋषीणां प्रातिभस्य चक्षुषोऽगोचरः, ते हि भगवन्तो व्यवहितविप्रकृष्टमपि हस्तामलकवत्पश्यन्ति / 'अगोचरः' भी अविषयः की तरह यहाँ तत्पुरुष है / सो ये दोनों पु० एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं। बहुव्रीहि का यहाँ अवकाश नहीं / प्रतिभा एव प्रातिभम् / स्वार्थ मे अए। अभ्यास-८ ( अजहल्लिङ्ग विधेय) १-*उर्वशी इन्द्र का कोमल शस्त्र, स्वर्ग का अलंकार, तथा रूप पर इतराने वाली लक्ष्मी का प्रत्याख्यान-रूप थी। २-वेद पढ़ी हुई वह राजकन्या अपने आपको बड़भागिन समझती है। उसका अपने प्रति यह प्रादर ठीक ही है। ३-परमात्मा की महिमा अनन्त है अतः यह वाणी और मन का विषय नहीं। ४-विपत्ति मित्रता की कसौटी है, सम्पत्ति में तो बनावटी मित्र बहत मिलते हैं, इन्हें मित्राभास कहते हैं / ५–'व्यभिचारिणी स्त्री 'घर का रोग हैं। विधिपूर्वक व्याही हुई भी ऐसी स्त्री को छोड़ दे। ६-आप हम सबका आसरा हैं, आपको छोड़कर हम कहाँ जाये। ७-हम देवताओं की शरण में जाते हैं और नित्य उनका ध्यान करते हैं / ८-निराश न होना ऐश्वर्य का मल है,निराश न होना परम सुख है,क्योंकि जो विनों से ठुकराये हुए निराश हो जाते हैं वे नष्ट हो जाते हैं / 6. गोविन्द मेरा शरीरधारो चलता फिरता जीवन है और सर्वस्व है। १०-*एक गुणी पुत्र अच्छा ( वरम् है, ) सैकड़ों मूर्ख नहीं, अकेला चाँद अन्धेरै को दूर कर 1 निकष, कष, निकषोपल-पु.० / 2 कृत्रिम, कृतक-वि० / 3-3 मित्राभासानि तान्युच्यन्ते / 4-4 कुलटा, इत्वरी, धर्षणी, असती, पुश्चली। 5 आधि-पु० / 6 गति-स्त्री० / 7-7 निविद्यन्ते / निरपूर्वक दिवा वद् ले लट् /