________________ ( 76 ) अभ्यास-२४ (लिङ्ग) १-दुलहिन के सम्बन्धी दुलहिन पर खीलों की वर्षा करें। यह कर्म गृह-समृद्धि की कामना की ओर संकेत करता है / २-उचित तो यह है कि साधारण उद्देश्य के लिये हम मापस में मिल जाएँ, नहीं तो हम सबका मलग 2 प्रयत्न असफल रहेगा। ३-पुत्र वही है जो सदाचरण से पिता को प्रसन्न करे। 4-* विपत्ति में जो साथ दे वही मित्र है। विपत्ति मित्रता की कसौटी है।५-* पहले पांच वर्ष बच्चे का लालन पालन करे और फिर दस वर्ष तक उसकी ताड़ना करते रहे। सोलहवे वर्ष के पाते ही पुत्र के साथ मित्र का सा बर्ताव करे। ६-भोजन 'प्रसन्नता से करना चाहिये। 7-* सत्य बोले और मीठा बोले, कटु सत्य न बोले और मीठा झूठ भी न बोले / ८-अगर मध्यापक मा जाएँ तो मैं माशा करता हूँ कि मैं दत्तचित्त होकर पढूंगा / ६-अब तुम्हें समान गुणों वाली सोलहवर्ष की सुन्दर कन्या से विवाह करना चाहिये ।१०-वह कहीं यह न मान बैठे कि मानवी जीवन का यही सबसे बड़ा लक्ष्य है। ११-हमारे सैनिकों से पूरी संभावना है कि वे अधिक संख्या वाले शत्रुओं को भी परास्त कर देंगे। १२-यह अचरज है कि अन्धा भी पढ़ लिख सके / पहले समय में यह नहीं हो सकता था। १३-मुझे विश्वास है कि छुट्टी होने से पहले यह सारा पृष्ठ नकल कर लिया जा चुका होगा। १४-सोने से पहले तुम्हें अपना पाठ याद कर लेना चाहिये था। १५-तुम्हें अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देनी चाहिये थी, शायद वे सिद्धि प्राप्त कर लेते। १६-उसे अपना मकान धरोहर (गिरवी ) नहीं रखना चाहिये था। शायद कोई सम्बन्धी उसकी सहायता कर देता। 27-* हे धनवान् 'इन्द्र ! हम तेरी सहायता से अपने मापको वलवान् माननेवाले शत्रों को दवा डालें। 18-* पश्चिम की ओर सिर करके न सोये / पांव धोकर खाना खाये, पर पांव धोकर न सोये / संकेतलिए का 'प्राप्तकाल', और 'कामचारानुज्ञा' अर्थों को छोड़कर लोट्लकार के समान प्रयोग होता है / इसका प्रयोग हेतुहेतुमद्भाव, संभावना योग्यता, शक्ति प्रादि मौर भी मों में होता है। लोट् लकार की अपेक्षा उसका विषय विस्तृत है। 1-1 प्रसन्नमुखोऽन्नानि भुञ्जीत /