________________ ( 154 ) होगी। ११-आगते राजनि रक्षिणोऽनुरथ्यं पङ्क्तिक्रमेण स्थापिताः / १२त्वममात्यमनुवर्तसे पुत्तलिकावच्च तेन नय॑से / १५-प्राचीना अस्माद् ग्रामादाम्राः, प्रतीचीनाश्चाशोकाः / अभ्यास-१० १--क्या आप मेरी सहायता करेंगे? हां, विचार तो है, यदि बस चला तो ।२-डूबते को तिनके का सहारा / ३-जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ / ४-जो जामत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है / ५–जो कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होयगी बहुरि करेगा कब / ६-वह दबे पांव पिछले दरवाजे से कमरे में प्रविष्ट हो गया और रुपया पैसा जो हाथ लगा लेकर चम्पत हो गया / ७-मेरा भाई और मैं मैच देखने जा रहे हैं, पता नहीं कि हम कब लौटेंगे / ८-वह बचपन से ही होनहार प्रतीत होता था, पर उसने अपने निन्दित आचरण से अपने कुल को सदा के लिये कलंकित कर दिया। 8-अपने मित्रों की सहायता करने में आनाकानी न करो 3 / ऐसा न हो कि समय पड़ने पर ये काम न आयें / १०-तुमने चार दिन से५ पुस्तक को हाथ नहीं लगाया। ११-रेशम (कौशेय, पत्रोर्ण) के कीड़े शहतूत के पत्तों पर पलते हैं / रेशम बनाने के लिये अगणित जीवों की हत्या होती है / १२-उसने अपने पुत्र की हत्या का बदला ले लिया। तिस पर भी उसका क्रोध शांत न हुआ / १३-सुशीला की सगाई श्री रामनिवास से हो गई है / अब इसका अाश्विन की पूर्णिमा को विवाह होगा। सकेत–२ ब्रुडतो हि कुशो वा काशो वाऽवलम्बनम् / कुश नित्य पुं० है और काश पुं० और नपुं० है / ३-योऽन्तरङ्गमनुसन्धत्ते, सोऽञ्जसा वेद (नेतरः)। ४-यो जागति स इष्टेन संप्रयुज्यते, यो निद्राति स तद्धापयति / 'हा' का णिच् कहा जा सकता है / 'अस्यत्यूह्योर्वा वचनम्'-यह वार्तिक इसमें प्रमाण है / मूल में प्रस् दिवा० परस्मैपदी है। 1-1. यदि प्रभविष्यामि / 2-2. भव्य, द्रव्य नपुं०, भूष्णु / 3-3. न विचारयेत्, न विमृशेत् / 4--4. उपकरणीभावं न यायुः। 5-5. चत्वारि दिवसानि (द्वितीया) / 6. तूद, ब्रह्मण्य--पु० / ब्रह्मदारु नपुं० /