Book Title: Anuvad Kala
Author(s): Charudev Shastri
Publisher: Motilal Banarsidass Pvt Ltd

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Page 233
________________ ( 182 ) श्याम-मैं निश्चय ही तुम्हारी सलाह मानूंगा। इस समयोचित' उपदेश के लिये ' मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। संकेत-श्याम-मित्र, मुझे पुराना अजीर्ण रोग है...""कालिकेनाजीणेन बाध्येऽहम् / प्रकृष्टः कालोऽस्येति कालिकः / 'प्रकृष्टे ठम्' (5 / 11108) / रामतो क्या तुमने इससे छुटकारा पाने का कोई......"न खलु नरुज्यलाभाय कश्चिदुपक्रमः कृतः ? श्याम-मैंने कई एक प्रसिद्ध डाक्टरों से परामर्श...."अहं वैद्यपरेन्योऽपृच्छम्, चिरं च तैरुपचरितोऽभवम्, परं न विशेषः कश्चिदभूत् / यहाँ "वैद्यवरेभ्यः" पञ्चम्यन्त है / प्रच्छ आदि अन्य धातु केवल विकल्प से द्विकर्मक हैं, पर यहां द्विकर्मक के रूप में प्रच्छ का प्रयोग नहीं किया गया। अभ्यास-३१ (पाम्य-जीवन तथा नागरिक-जीवन ) हरि-प्राम्य-जीवन व नागरिक-जीवन इन दोनों में से तुम किसे पसन्द करते हो? मदन-मैं तो नागरिक-जीवन को सदा ही अच्छा समझता हूँ। हरि-क्या नागरिक-जीवन में वास्तव में कोई चाही आनेवाली बात है ? मदन-प्रिय मित्र, मुझे क्षमा करो। तुम तो अनजान आदमी की तरह बातें करते हो! हरि-कृपया मुझे इस विषय में ठीक-ठीक समझायें। मदन-मित्र हरि, नागरिक-जीवन के इतने सुख हैं कि उनका वर्णन करना कठिन है / नगरों में शिक्षा से सम्बन्ध रखनेवाली बड़ी-बड़ी संस्थाएं हैं / इसके प्रतिरिक्त पुस्तकालय, मजायबघर, चिड़ियाघर, विद्या सम्बन्धी सभाएँ, राजनैतिक-मण्डल, विनोदसमाज प्रादि भी वहाँ होते हैं / इन सबसे मानसिक विकास होता है। हरि-यह ठीक है, हमें उपर्युक्त साधन ग्रामों में नहीं मिल सकते। परन्तु प्रिय मित्र, क्या तुम विश्वास कर सकते हो कि ये सब साधन स्वयं ही जीवन को अच्छा बनाते हैं। . 1-1. सामयिकस्यास्यानुशासनस्य कृते (काल्याया अस्या अनुशिष्टेः कारणात्)।

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