Book Title: Anuvad Kala
Author(s): Charudev Shastri
Publisher: Motilal Banarsidass Pvt Ltd

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Page 254
________________ ( 203 ) जानते कि अपने बल बूते पर गरजते !' निर्भीक आलोचना का सेहरा' तो मेरे सिर बँधा', उसका मूल्य दूसरों से क्यों वसूल करूं ? मेरा पत्र बन्द हो जाय, मैं पकड़कर कैद किया जाऊँ, मेरे बरतन भांड़े नीलाम हो जायें, मुझे मंजूर है। जो कुछ सिर पड़ेगी२ भुगत लूंगा, पर किसी के सामने हाथ न फैलाऊँगा। संकेत--जगह-जगह... 'हुए-स्थाने स्थाने सभाः समवेताः, बृहन्ति चाधिवेशनानि भूतानि / परन्तु सूखे बादलों....."नहि शुष्कघनजितेनैव सन्तृप्यति धरा। मैंने अपने ग्राहकों की... 'नही दबाई थी-नाहमनुमान्य ग्राहकव्रज प्रभवद्भिः शासितृभिर्व्यगृह्णाम् (प्रभवतः प्रशासितन्समासदम्) / नहि कश्चित्संविधातुः पक्षपोषं प्रसभमकारयन्माम् (प्रसभेन, प्रसह्य, हठात्, बलात्० ) / विग्रह का सकर्मकतया भी प्रयोग हो सकता है। इसके स्थान पर वि-रुध् का भी प्रयोग हो सकता है। दूसरों को कहने का 'बूते पर गरजते-परेभ्य इति वक्तु किमित्यवसरं दिशेयम्-यदि परालम्बेनेष्टा अल्पेर्था निविष्टास्तहि किमतिदुर्जयं जितम् / शूरं त्वाऽगणयिष्याम परं चेदनपेक्ष्याजिष्यः / 'अल्प' की जस् परे होने पर वैकल्पिक सर्वनाम संज्ञा है-अल्पाः। अल्पे / अभ्यास-५० पौ फटते ही जो नींद टूटी और कमर पर हाथ रखा तो थैली३ गायब ! घबराकर इधर-उधर देखा तो कई कनस्तर तेल के नदारद ! अफसोस में बेचारे ने सिर पीट लिया और पछाड़५ खाने लगा। प्रातः काल रोते बिलखते घर पहुँचे। सहुप्राइन ने. जब यह बुरी सुहावनी सुनी तब पहले रोई, फिर अलगू चौधरी को गालियां देने लगी६-निगोड़े ने ऐसा कुलच्छनी बैल दिया कि जन्म भर की कमाई लुट गई / अलगू जब अपने बैल के दाम मांगते तब साहु और सहुधाइन चढ़ बैठते और अण्ड बण्ड बकने लगते-वाह ! यहां तो सारे जन्म की कमाई लुट गई, सत्यानाश हो गया, इन्हें दामों को पड़ी है। मुर्दा बैल दिया था, उस पर 1-1 सत्कारस्य महतो भाजनं जातः / 2-2 या काचिदापदापतिष्यति माम् / 3-3 अर्थभस्त्राऽनशत् / 4-4 तलोदङ्काः, कुत्वः (कुतू स्त्री० का बहु० ) / 5 मोहितुमारब्धः / 6-6 शप्तुमारब्ध / 7 क्षुद्र, हताश, नीचवि० / 8 साधु, वाघुषिक / 'साधुर्वार्धषिके चारो सज्जने चाभिधेयवत्'-विशवः / mananewmummeaninan.

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