________________ ( 205 ) हजार रुपये सरकार से लेकर यह अनुष्ठान किया है / बेचारे पण्डितजी ने रात लोट पोटकर काटी, पर उठे तो शरीर मुर्दा सा जान पड़ता था। खड़े होते थे तो आँखें तिलमिलाने लगती थीं, सिर में चक्कर आ जाता था। पेट में जैसे कोई बैठा हुआ कुरेद रहा हो। सड़क की तरफ आँखें लगी हुई थीं कि कोई मनाने तो नहीं आ रहा है। सन्ध्योपासन का समय इसी प्रतिज्ञा में कट गया / इस नित्य पूजन के पश्चात् नाश्ता किया करते थे। आज अभी मुँह में पानी भी न गया था। न जाने वह शुभ घड़ी कब आवेगी। फिर पण्डिताइन पर क्रोध आने लगा। आप तो रात को भर पेट खा कर सोई होगी, पर इधर भूल कर भी न झांका कि मरे हैं या जीते हैं। कुछ बात करने ही के बहाने थोड़ा सा मोहनभोग न बनाकर ला सकती थी ? पर किसको इसकी चिन्ता है ? रुपये लेकर रख लिये, फिर जो कुछ मिलेगा, वह भी रख लेगी। मुझे अच्छा उल्लू बनाया। ____संकेत–पर उठे तो शरीर मुर्दा-सा जान पड़ता था-उज्जिहानं तं स्वदेहो मृतकल्प एव प्रत्यभात् / खड़े होते........."तिलमिलाने लगती थींउत्तिष्ठतस्तस्य चक्षुरुपघातोऽभवत् ( चक्षुष्प्रतिघातोऽभवत्, तैमिय॑मिवाभूदक्ष्णोः ) / पर इधर जीते हैं-इतस्तु प्रमत्तापि न दृशमपातयद् म्रियेऽहंध्रिये वेति विज्ञातुम् / अभ्यास-५२ एक सेठ जी एक बार काशी आये थे। वहाँ मैं भी निमन्त्रण में गया था। वहाँ उनकी और मेरी जान पहिचान हई। बात करने में मैं पक्का फिकैत हूँ५। बस, यही समझ लो कि कोई निमन्त्रण भर दे दे, फिर मैं अपनी बातों में ऐसा ज्ञान घोलता हूँ६ वेद शास्त्रों की.ऐसी व्याख्या करता हूँ कि क्या मजाल कि यजमान उल्लू' न हो जाय / योगासन, हस्तरेखा-सभी विद्याएँ जिन पर सेठों महाजनों का पक्का विश्वास है मेरी 1-1. पार्श्वपरिवर्तनैः, शय्यायां लुठनैः / 2-2. उदरपूरं भुक्त्वा / 3-3. संकथां कामप्यपदिश्य / 4-4. सुष्ठु मोहमापादितोस्मि / 5-5. अतितरां प्रवीणोस्मि वाचो युक्त्याम् / 6-6. मदुक्तोर्ज्ञानेन संमिश्रयामि (संसृजामि, संपृवच्मि)। 7-7. कोऽस्य विभवो यजमानस्य यन्मोहं नापद्य तेति /