________________ ( 183 ) मदन-निश्चय से ये साधन हमारी बुद्धि के विकास में सहायक होते हैं और मानसिक भूख के दुःख से बचाते हैं। हरि-तो क्या मदन तुम यही समझते हो कि मनुष्य केवल मात्र बुद्ध्युपजीवी प्राणी है। मदन-मैंने तो यह कभी नहीं कहा। हरि-तो फिर तुम नगरों में इन साधनों के होने के विषय में इतना जोर क्यों देते हो? तुम्हें मालूम होना चाहिये कि जीवन के दूसरे अङ्ग भी हैं जो बराबर गौरव रखते हैं और जिनकी पुष्टि के लिये विशेष वातावरण की प्रावश्यकता होती है। मदन-हां, यह ठीक है / पर तुम्हारा इससे क्या अभिप्राय है ? हरि-मेरे विचार में स्वास्थ्य, सदाचार, प्रकृति-निरीक्षणादि जीवन के अन्यान्य मङ्गों के लिए नगरों में कोई वायुमण्डल नहीं। मदन-मैं यह मानने के लिये तैयार नहीं। हरि-तुम मानो या न मानो पर स्मरण रहे कि गांव ही ऐसे स्थान हैं जो जीवन को स्वस्थ बनाते हैं। गांवों में गाड़ियों के संचार से उड़नेवाली धूल नहीं होती, वहां भीड़-भाड़ नहीं होती / सूर्य की अमृत-भरी किरणें ग्रामीणों के घरों में प्रवेश कर उन्हें जगमगा देती हैं। फिर यह गांवों का ही श्रेय है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है और सदाचार उत्तरोत्तर बढ़ता है। इसी प्रकार ग्रामीणों को हो प्रकृति-निरीक्षण का पर्याप्त समय मिलता है। ___ मदन-परन्तु गांवों में जीवन को सरस व रम्य बनाने के साधनों की कमी है / ग्राम्य-जीवन नीरस एवं कठोर है। हरि-इस प्रकार की चटक-मटक से जीवन अस्वाभाविक तथा प्राचारहीन हो जाता है। गांव का सरल, तपोमय तथा कर्मशील जीवन सदा ही तुम्हारा पांव नेकी के रास्ते पर जमाए रखेगा। संकेत-मदन-नागरिक' जीवन के इतने सुख हैं कि..."संख्यातिगामीनि (संख्यातिगानि) खलु नगरवाससुखानि / 1. जीवन, जीवित का संस्कृत में 'प्राप' अर्थ है / जहाँ हम संस्कृत में 'प्रायः' बोलते हैं वहीं जीवन, जीवित का प्रयोग कर सकते हैं / प्रकृत में जीवन से वास उपलचित है। नागर, नागरक, नागरिक, पौर-पुं० /