Book Title: Anuvad Kala
Author(s): Charudev Shastri
Publisher: Motilal Banarsidass Pvt Ltd

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Page 242
________________ ( 191 ) हथियार निकाला और ताला तोड़कर अलमारी खोली / उस समय मेरा कलेजा जोर-जोर से धड़क रहा था / एकाएक आशा का चमकता हुआ मुख दिखाई दिया। पाप के वृक्षों में सफलता का फल लग गया था / मैने नोटों का पुलिन्दा उठाया और कमरे से निकल कर ऐसा भागा, जैसे कोई पिस्तौल लेकर मारने को पीछे दौड़ रहा है / परन्तु अभी मकान की चारदीवारी से बाहर हुआ ही था कि उसने मुझे दौड़ते हुए देखा, तो कड़ककर कहा-"कौन है ?" मेरा लहू सूख गया। कुछ उत्तर न सूझा / हाथ पांव फूल गये। गिरफ्तारी के विचार ने मुँह बन्द कर दिया। मेरे चुप रहने से मालिक मकान को और भी सन्देह हुमा और वह जरा तेज होकर बोला-"तू कौन है ?" संकेत -अंधेरे में.... 'काम दिया-तमसि प्रदीपादपि भूय उपाकरोत् / एकाएक आशा का चमकता....."सपद्यवास्फुरत्प्रत्याशामरीचिः / कुछ उत्तर 'नोत्तरं किमपि प्रत्यभान्माम् / मुँह बन्द कर दिया-मुखममुद्रयत् / (ख) कोई प्रादी 3 चोर होता, तो भाग निकलता, बचने के लिये वार करता और नहीं तो बहाना ही बनाता / पर यहाँ तो पहली ही चोरी थी, फांस लिये गये / हाथ उठाने का किसका साहस था, वहां तो अपने ही पांव कांप रहे थे और झूठ बोलना सहज नहीं। इसके लिये अभ्यास की आवश्यकता है / मैं अब भी उत्तर न दे सका। मालिक ने मेरी गर्दन नापी, और पकड़ कर उसी कमरे में वापिस ले गया। मेरे हाथों में पुलिन्दा देखकर आग बबूला हो गया। सहसा उसकी दृष्टि अलमारी की ओर गई। जलती आग पर जैसे किसी ने तेल डाल दिया। नोटों का पुलिन्दा मुझसे छीन मेरे हाथ पांव बांधे और मार-मार मेरी वह दुर्गति बनाई कि क्या कहूँ। अधमुना कर एक कोने में डाल दिया। दूसरे दिन मुकदमा पेश हुआ / मैंने प्रारम्भ में ही अपराध स्वीकार कर लिया। दो बरस कारावास का दण्ड हुआ। परन्तु मेरे लिये वह 1. उढगृह्माम् / 2. अशुषन्मे शोणितम् / 3. चौर तस्कर-पु / यहां चौर और तस्कर शब्दों में 'ताच्छील्य' में प्रत्यय हए हैं। जिसका चोरी करने का स्वभाव नहीं पर कभी-कभी चोरी कर बैठता है उसे 'चोर' कहते हैं / 4-4. कण्ठेऽग्रहीन्माम् / 5-5. कोपाटोपभयङ्करः। 6-6. अपरेद्य र्व्यवहारः प्रास्तूयत /

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