________________ ( 196 ) अभ्यास-४३ रात्रि समाप्त हुई, प्रभात का दृश्य दृष्टिगोचर होने लगा। तारागण, जो रात्रि के अन्धेरे में चमक-दमक दिखा रहे थे, अपने प्रकाश को फीका देखकर धीरे-धीरे लोप हो गये / जैसे चोर प्रभात का प्रकाश होते ही अपने-अपने ठिकाने को भागते हैं, ऐसी ही रात्रि की स्याही का रंग उड़ा / पूर्व दिशा में सफेदी प्रकट हुई, मानो प्रेमी सुबह ने प्रेमिका रात्रि के स्याह, बिखरे बालों को मुख से समेट लिया और उसका उज्ज्वल मस्तक दीखने लगा। प्रातः की वायु युवकों की तरह अठकेलियां करती हुई चली। कोमल कोमल शाखाएँ झूमने लगीं। पतियों ने चहचहाना प्रारम्भ किया। उद्यान में गुँचे खिलने लगे, जैसे नींद से कोई नेत्र खोले / नदी में पतली-पतली लहरें पड़ी और सब लोग अपना-अपना कार्य करने लगे। ___ संकेत–तारागण जो रात्रि के अन्धेरे में......"लोप हो गये-नक्तं तमसि रोचिष्णून्युडूनि सम्प्रति मन्दरुचीनि सन्ति तिरोहितानि (नैशिके तिमिरे विभान्त्यस्ताराः सम्प्रति हतत्विषोऽदर्शनं गताः)। मानो प्रेमी सुबह "समेट लियामन्ये प्रियं प्रातः प्रियाया निशाया असितान्पर्याकुलान् मर्धजान्मुखात्प्रतिसमहार्षीत् / प्रातः की वायु..... चली-वैभातिको वायुर्युवजनवत् सविभ्रममवात् / जैसे नींद से कोई नेत्र खोले यथा सुप्तोत्थितः कश्चिन्निमीलिते लोचने समुन्मीलयेत् / प्रभ्यास-४४ प्रातःकाल लाला जी ने आकर दुकान खोली ही थी कि एक सफेद पोश कोट पतलून डांटे, कालर टाई लगाये आ पहुँचे। कई थान सूती (तान्तव) रेशमी (सौम, कौशेय) निकलवाकर कोई साठ (60) रुपये का कपड़ा खरीद कर एक गंठरी में बंधवाया और लाला जी से सौ रुपये के नोट की बाकी निकालने के लिये कहा। दुर्भाग्य से लाला जी पेटी की चाबी घर ही भल आये थे / बाबू साहिब से कहा-आप बैठे, मैं लपक कर मकान से चाबी ले आऊँ / लाला जी को जाने और पाने में कोई पांच ही मिनट लगे 1. विद्रवन्ति / 2. श्यामिका। 3. प्रातर् अव्यय है, इसका विशेषण नपुंसक लिंग में ही हो सकता है / 4-4. गलबद्धीं चाबध्य /