________________ ( 198 ) हन्यते न्यमाने शरीरे--गीता के इस मन्त्र को प्रत्यक्ष करने वाले महात्मा का भला ' स्त्र द्वारा घात कैसा ? मरण कैसा? झे तो ऐसा लगा कि बापू उसी शान्त मुद्रा में अन्तरिक्ष से मानों हमें अपने हाथ के संकेत से सावधान कर रहे हैं और उनकी मीठी-धीमी आवाज़ रह-रह कर हमारे कानों में गूंज रही है-यह कि, “खबरदार ! क्रोध में अन्धे न होना / दण्ड देना२ असल में भमवान का या फिर न्यायी शासन का काम है। मेरे जीवन के उपदेशों पर जोश में आकर पानी न फेर देना। जहर का नाश जहर से नहीं होता, आग आग से नहीं भुजेगी।" संकेत–यात्रियों की प्रांखों से...'हुए थे-यात्रिकाणां लोचनाभ्यां प्रावहदस्रधारा, प्रसीदच्च कण्ठः प्रणतानाम् / यहां यात्रियों के अनेक होने पर भी 'लोचन' से द्विवचन हुआ। इस पर वामन का वचन है 'स्तनादीनां द्वित्वाविष्टा जातिः प्रायेण / ' स्वयं बापू ने यह सब लीला रची होगी-राष्ट्रपिता स्वयंमेवेदं प्रयुक्तवान्स्यादिति प्रत्यभान्माम् / उनकी मीठी-धीमी आवाज....'अन्धे न होना-मन्दा मधुराश्च तस्य वाचोऽसकृत प्रतिध्वनम्तीव श्रवणयोरिदं चादिशन्ति प्रतिजागृत, क्रोधान्धा मा स्म भवत / मेरे जीवन भर के...यावज्जीवं कृतान्ममोपदेशान्क्रोधावेशेन मा स्म मोघतां नष्ट / अभ्यास-४६ दरिद्र ब्राह्मण का घर आज से ठीक पैंतीस वर्ष की बात है / नव उन्नति का उज्ज्वल सन्देश लानेवाली बीसवीं शताब्दी का शुभागमन हुए अभी एक डेढ़ मास हुआ था, हां, वह 1901 ईस्वी की शिवरात्रि का प्रातःकाल था, जब कि इटावा के-केवल पांच छः घरों के-कदम पुरा नाम के एक अतिसामान्य गांव में 'कहां कहां की रोदन-ध्वनि 3 से किसी हल बैल विहीन किसान के घर की अशान्ति-वृद्धि करता हुआ एक बालक उत्पन्न हा / उसे घर केवल इसलिये कह सकते हैं। 1-1. शान्ताकार-वि० / 2-2. दण्डधारण, दण्ड प्रणयन, शासननपुं० / 3--3. क्वाहं क्वाहमुपनीत इत्याक्रोशेन /