Book Title: Anuvad Kala
Author(s): Charudev Shastri
Publisher: Motilal Banarsidass Pvt Ltd

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Page 240
________________ ( 186 ) अभ्यास-३५ (कथायें या कांश) अन्त में वह फांसी पर चढ़ा दिया गया और लाश फड़कने लगी। इतने में लोगों ने देखा कि एकदम मादमी घोड़ा कड़कड़ाता हुआ सरपट दौड़ाता हुमा सामने से पा रहा है। दम के दम में जेलखाने में दाखिल होकर उसने कहा कि प्रभी' रोको, फांसी न देना' / पोर वहाँ लाश तड़फड़ा रही थी। मनुष्य के मन की भी विचित्र दशा है, घड़ी में माशा घड़ी में तोला। अभी दो दिन ही हुए कि शहर भर इस कातिल के लहू का प्यासा था। किसी ने दांतों से बोटियां नोची, किसी ने काट खाया, किसी ने इस जोर से चुटकी ली कि उसका रंग पीला हो गया / सब प्रार्थना करते थे कि इसको ऐसा दण्ड मिले कि इसकी बोटियाँ उड़ाई जाय। इसको चील और कौवे खायें, गाड़ दिया जाय / अाज लाश का फड़कना देखकर बहुतों की आंखों में आंसू आ गये / तो कारण क्या ? उस समय उसकी विवश अवस्या को देखकर उसका दोष, उसका पाप और उसका अपराध कुछ याद नहीं पाता था। संकेत-अन्त में..."फड़कने लगी-अन्ते स उद्बध्य व्यापादितः / मृतश्चास्य कायो व्यचेष्टत (व्यवर्तत) / मनुष्य के मन को...."तोला-विचित्रा हि चित्तवृत्तयो नृणाम् / क्षणे रोषः, क्षणे तोषः। किसी ने दांतों से बोटियां नोचीएको दन्तः शरीरमांसशकलान्युदलुञ्चत् / अभ्यास-३६ लाला चमनलाल का खर्च प्राय से अधिक था, इसलिये प्राय: उदास रहा करते थे। उनकी स्त्री५ की हथेली में छेद था, पानी की भांति खर्च करती पी / लाला चमनलाल बहुत मितव्ययी थे। उनका खर्च बीस रुपये से अधिक नपा / परन्तु उसकी स्त्री बड़े घर की बेटी थी, मखमली सलीपर, रेशमी साड़ी (कोशेयम्, कौशेयी शाटिका) पहनती, रुपये का घी दूसरे ही दिन खर्च कर देती / दो तीन भाजियों के बिना रोटी का ग्रास उसके कण्ठ से नीचे न उतरता था और रोटी खाकर जब तक वह फल न खा लेती, तब तक भोजन 1-1. बिलम्बयोद्वन्धनम् / 2-2. त्वचमस्यागृह्णात् / 3-3. अक्षिणी उदश्रुखी प्रभूताम् / 4. चिन्ताकुलः / 5-5. गृहिणी च व्ययेऽतिमात्रमुक्तहस्ता पानीयवद् विन्ययुक्तार्थम् /

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