________________ ( 188 ) दुका०–श्रीमन्, पाप तो मुझे बार-बार शर्मिन्दा करते हैं। क्या आज आपने किसी को निमन्त्रण दिया ? ग्राहक-हां, आज मैंने कुछ मित्रों और सम्बन्धियों को चिरञ्जीव रमेश की वर्ष-गांठ के दिन पर बुला भेजा। दुका०-यह लीजिये तीन दर्जन केले / सारे बारह रुपये हुए / कहो तो पैसे आपके हिसाब में डाल हूँ। ग्राहक-नहीं, नहीं, वह सर्वथा भिन्न हिसाब है। यह लो पन्द्रह रुपये पांचपांच के तीन नोट ! बाकी तीन रुपये दे दो। दुका०-सबेरे-सबेरे नोट कौन तोड़ेगा / अभी पाप ने तो बोहनी कराई है। ग्राहक०-अपनी तिजोरी तो देखो, कोई दो चार रुपये निकल ही आयेंगे / दुका०-( तिजोरी देखकर ) लीजिए, भापका तो काम बन गया, और ग्राहकों से तो मैं निपट लूंगा। संकेत-ग्राहक-सेब कैसे दिये हैं ?........प्राताफलानि केनार्पण विक्रीयन्ते / ग्राहक-गन्दे, सड़े या कच्चे सेब न ढकेल देना...............दूषितानि पूतिगन्धीनि ( पूनानि ) प्रामानि च फलानि मा स्म दाः। दुका०-यदि फिर भी पसन्द न आये तो पैसे........न चेदभिनन्दनीयानि स्युः, मूल्यं प्रतिगृह्यताम् / ग्राहक-बम्बई के केले कैसे दिये हैं........मुम्बापुरीकदलीफलानि कथं विक्रीयन्ते ? दुका०–श्रीमन्, एक रुपये दर्जन..........श्रीमन् रूप्यकेण द्वादशकम् / ग्राहक-हां, आज मैंने कुछ मित्रों और सम्बन्धियों को........"प्रस्तु, अद्य मया केचित्सुहृदो ज्ञातयश्चायुष्मतो रमेशस्य वर्षग्रन्थिपुण्याहे निमन्त्रिताः। ___ दुका०-कहो तो पैसे आप के हिसाब में डाल दूं ?........."यदीच्छसि तदा द्वादश रूप्यकाणि भवदीये देयराशौ योजयामि / ग्राहक-यह लो पन्द्रह रुपये के पांच पांच के तीन नोट"........"प्रत्येकं मुद्रापञ्चकसंमितानि त्रीणीमानि प्रमाणपत्राणि गृहाण। दुका०-( तिजोरी देखकर ) लीजिए, आपका तो काम बन"........"( लोहमञ्जूषामवलोक्य ) परिगृहाण, तावत् निष्पन्नं ते कार्य ( सिद्धं ते समीहितम् ) ग्राहकान्तरस्तु स्वयं व्यवस्थापयिष्यामि।