________________ ( 181 ) विष्णु०-तो देव, क्या तुम्हारे विचार में....." किं मन्यसे देव, शोभेतापि संस्कृतानभिज्ञता हिन्दोरिति ? विष्णु-पूर्वी तथा पश्चिमी विद्वानों के अनुसार 'हिन्दु' हो और संस्कृत से...."हिन्दुश्च संस्कृतानभिशश्चेति विप्रतिषितम् इति प्रतीच्या प्रपि विद्वांसः, किमुत प्राच्याः ? अभ्यास-३० (बैद्य और रोगी) राम-प्रिय श्याम, तुम्हारा चेहरा पीला क्यों पड़ा है ? श्याम-मित्र, मुझे पुराना अजीर्ण रोग है। राम-कृपया मुझे यह बताइये कि यह कैसे प्रारम्भ हुप्रा ? श्याम-मेरे विचार में यह चिर' तक बैठने की मादत से हुआ है। राम-तो क्या तुमने इससे छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं किया ? श्याम-मैंने कई एक डाक्टरों से परामर्श किया मोर देर तक उनका उपचार करता रहा, परन्तु कोई परिवर्तन नहीं हुआ। .. राम-तुम्हें इन डाक्टरों के पास जाने की किसने सलाह दी थी? वे लुटेरे हैं। वे तो विदेशी दवाइयों की बिक्री करने के साधन मात्र हैं एवं वे पोषधों से रोगी के शरीर एवं पेट को भर देते हैं / श्याम-प्रिय मित्र, मेरा भी ठीक यही विचार / कृपया मुझे बतायें कि अब मुझे क्या करना चाहिये। राम-तुम स्वयं स्वास्थ्य के प्रारम्भिक नियमों को पढ़ सकते हो और उन नियमों का पालन करो / संक्षेप में मैं तुम्हें नियमित रूप से प्रातः भ्रमण, थोड़ा सा व्यायाम, हल्का भोजन, जिसमें 6 फल प्रधान हो और पूरी नींद की सलाह दे सकता हूँ। 1-1. किमिति विवर्णं ते वदनम् / 2-2. चिरोपवेशितया, चिरासनतया। 3. उपाय, प्रौपयिक, प्रतिकार-पुं० / क्रिया स्त्री० / 4-4. इदानों कि मे कृत्यमित्यनुशाधि माम् / 5. प्रपमानुष्ठेया नियमाः। 6-6. फलभूयिष्ठ (माहारः)।