________________ ( 170 ) दुःखी है तो कभी सुखी / २०-विरोध होने पर भी अन्त्यजों ने मन्दिर प्रवेश का निश्चय किया। संकेत-नायं राजा, राजमात्रस्तु भवत्येव / 'मात्रा' यहाँ परिच्छद का वाचक है / राज्ञो मात्रा परिच्छद इति राजमात्रा। राजमात्रेव मात्रा यस्यासौ राजमात्रः / 'मात्रा परिच्छदे / अल्पे च परिमाणे सा'-अमरः / 'महामात्र' शब्द में भी इसी अर्थ में 'मात्रा' शब्द का प्रयोग हमा है। ६-यस्य न जीर्यत्यन्नं सोऽपतर्पणं कुर्यात् / ८-नेदं रहस्यं पितुः संश्रवण उदाहार्यम् / ह-अस्ति मे मुखवरस्यम् / तेन मधुरा अप्यापो मे नीरसायन्ते / ११-न गर्भिणी कूपमवलोक. येत् / यहाँ अव-उपसर्ग का 'नीचे' अर्थ सुस्पष्ट है। द्वितीया विभक्ति के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिये / १२-मुखेऽस्य प्रहस्तं देहि, अवहस्ते च मुष्टिम् / अपहस्तेन चैनमगाराद् बहिष्कुरु (यापय) / १३–यदि यियाससि तदा याहि, परं प्रतिहस्तं दत्त्वव यास्यसि / मा स्म मा मुधव विहस्तं करोः। १५-सर्वस्य जीवस्य स्वभावापत्तिधं वेति ततः कस्य कृते बिभीयात् ? स्वभावापत्तिः==मृत्युप्राप्तिः / इस अर्थ में चरक का निम्नस्थ सन्दर्भ प्रमाण है-अयमस्मात् क्षणात्। स्वभावमापत्स्यते। स्वभावः प्रवृत्तेरुपरमो मरणमनित्यता निरोध इत्येकोऽर्थः (चरक सूत्रस्थान 30 / 25) / १८-करातं, दार्वी, हरीतकी, शिवाऽमृता चायुर्वेद गुणतोऽतिस्तूयन्ते / शतपुष्पासवश्च बह्वर्थ इति गीयते / १६-प्रशितानशितेन जीवति / क्लिष्टाक्लिशितेन च वर्तते / अभ्यास-२४ १-(चारो ओर आँख फेरकर), दुष्ट, क्षुद्र, वानर, मैं अभी तेरे घमण्ड को दूर करता हूँ। २-मैं तुझसे उम्र में बड़ा हूँ, कितने बरस, यह नहीं कह सकता। ३-धृतराष्ट्र के जानते हुए दुर्योधन आदि ने पाण्डवों को उनके अधिकार से वञ्चित किया। ४-परीक्षा निकट है, और तू इस प्रकार उदासीन है, यह क्योंकर उचित है ? ५-अब प्रातः होने को है, समय है कि हम गौनों को दोहे / ६-यह बढ़िया दूध है और यह घटिया, कैसे जानते हो ? ७-धन्य हैं वे लोग जो लक्ष्मी को न चाह कर सरस्वती की कामना करते हैं। ८-ऋतुयें छः मानी जाती हैं, पर हेमन्त और शिशिर को एक करके ऋतुयें पांच होती हैं / 1-1. मन्दिर प्रवेशाय मनो दधिरे /