________________ ( 176 ) कुछ नींद पाई। माशा है धीरे 2 ठीक हो जायगा। 16-* हाथ कंगन को पारसी क्या ? 17-* किसी के मर्मों पर प्राघात न करे। 18-* मैं पाप के सामने धरासना मार कर बैठ जाऊँगा जब तक आप प्रसन्न नहीं होंगे। 19* तुम्हें कौन उपदेश दे सकता है चाहे साक्षात् बृहस्पति भी क्यों न हो / 20* उत्तम वक्ता श्रीराम पर्वतों के ढलानों पर उगे हुए ऊपर से फूले हुए वृक्षों के झंडों के बीच में से निकल गये। संकेत-१-वत्सान्योषितः परिजनं चोपादाय वयं विंशतिः स्मः / ३बहुवर्णेयं कुथा कियता मूल्येन क्रीता ? अयं लोभनीयः प्रीतिदायो भवितुमर्हति / ४-यदा देवदनो युद्ध पर्यहीयत तत्प्रतिद्वन्द्वी यज्ञदत्तश्च व्यवर्धत तदा....... तीव्रण बाणवर्षेण यज्ञदत्तं पराङ्मुखमकरोत् / ५-गिरिसंकटे स्थितां किष्किन्धां भ्रात्रापमानितः सुग्रीवः शशास / इस प्रर्थ में संकट नपुंसक है और संबाध 0 है। ७-क्रमतेऽस्य बुद्धिः समं समेषु शास्त्रेषु न तु क्वचित्सज्जते / ६-मास्ताम, श्रमस्तावन्मुच्यताम्, प्रातिथ्यं च नो यादृशं तादृशं प्रतिगृह्यताम् / १२-विदुष्मती वाराणसीं वणिजो 'जित्वरी' व्यपदिशन्ति / प्रचुरा विद्वांसः सन्त्यस्यामिति विद्ष्मती / 'तसो मत्वर्थे' इससे 'भ' संज्ञा होकर 'वसोः सम्प्रसारणम्' से सम्प्रसारण हमा। १३-शय्योत्थायं पिबन्ति फाण्टं नव्याः / १५-चिरं रुग्णस्तपस्वी, गणरात्रे व्यतीतेऽद्य कलया निद्रामसेविष्ट / 'गण' शब्द यहाँ बहुत्व का वाचक होते हुए भी संख्यावाची है। 'बहुगणवतुडति संख्या' / गणानां रात्रीणां समा. हारः = गणरात्रम् (द्विगु) / प्रच् समासान्त / 'संख्यापूर्व रात्रं क्लीबम्' इस वचन से नपुंसक लिङ्ग हुमा। अभ्यास-२८ 5-* धनी को चाहिये कि वह अपने हस्ताक्षर सहित रसीद दे। २-मुझे अपते शस्त्र की सौगन्ध है। मैंने जो एक बार कहा उससे रेखामात्र भी नहीं हटूंगा। ३–पाप तैयार हो जाइये, रेलगाड़ी माने को है। ४–नारायण को भोग बिना घी नहीं लगाया जाता। ५एक पुरुष तो दूसरे का कांटा निकालता है और दूसरा कांटा चुभोता है मौर इससे सुखलाभ करता है, इसमें प्रकृतिभेद ही कारण है। 6-* हम एक साथ चलते आये हैं और वहीं जायेंगे। 7-* हे नरश्रेष्ठ, लोग 1-1 'द्रुमजालानि मध्यन जगाम।' ऐसा ही शिष्टशैली है। रामायण में दूसरे स्थान (2 / 68 / 18) पर भी इसी प्रकार का न्यास देखने में पाया है-'ययुर्मप्येन वाह्रीकान् सुदामानं च पर्वतम्'। 2-2 सत्येनायुधमालभे। ३-यस,सज्ज-वि०।