________________ ( 177 ) पुरोचन को इतना दोषयुक्त नहीं मानेंगे जितना कि पाप पर दोष लगायेंगे। 8-* प्राशा है सब शास्त्रों में निपुरण शिक्षक कुमारों को धर्म की शिक्षा दे रहे हैं। 8-अध्यापक ने मवधि 3 नियत कर दी। जिसके बीच में सभी विद्यार्थियों को काशिका का पूर्वार्द्ध अच्छी तरह तैयार कर लेना होगा / १०अर्जुन ने दिग्विजय के प्रसङ्ग में दूर विदूर सभी देशों के राजामों को युद्ध में परास्त किया, उनके राज्य को नहीं छोना पर उन पर कर लगा दिया / ११-यह स्वभाव से टेढ़ा है, बिना कारण ही रोष में आ जाता है, इसे मनाने की कोई जरूरत है६ / 12-* मैं तुम्हारे देश में प्रवेश नहीं करूंगा यदि यह मनुष्यों के प्रतिकूल है। १३-जो भी उपाय किये जा सके उन सबसे युद्ध को दूर रखने का यत्न करना चाहिये-ऐसा महामन्त्री श्रीनेहरू जी कहते हैं। 14 हम सब आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, सब विद्वान् पहुँच चुके हैं। 15-* महाराज धृतराष्ट्र ने विदुर को बुना भेजा / १६-ऐसी बेजोड़ बातें करते हो और अपने को बुद्धिमान् व विद्वान् समझते हो, तुम्हें लज्जा क्यों नहीं पाती ? १७-उनमें से हर कोई जानता है कि उनका आपस का प्रीति व्यवहार दिखावे का है, सच्चा नहीं। 18-- जिस प्रकार तपाई हुई धातुओं के मल नष्ट हो जाते हैं वैसे ही प्राणों 1. कारखिकाः / 'परीक्षकः कारणिकः'-अमर / 2-2. धर्मे कारयन्ति / 'कारितशिक्षिते'-ऐसा पर्यायरूप में अमर में पाठ है। 3--3. कालमकरोत् / 4-4. नाहरत् / 5--5. करे च तान् न्यवेशयत् / 'प्रजयत्पाण्डवश्रेष्ठः करे चैनं न्यवेशयत्' (सभापर्व० 2812) / ‘स विनिर्जित्य राज्ञस्तान् करे च विनिवेश्य तु' (सभा० 28 // 18) / यहाँ विभक्तियों के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिये। 'तान राज्ञः करदोचकार' यह तदर्थक वाक्य तो है, अनुवाद नहीं। 6-6. नास्मै देयो ह्यनुनयः / नायमनुनेयः / 7--7. अनुष्ठेय-वि०। 8-8. युद्धं दूरतो रतितुं यत्नः कार्यः / 'विग्रहं दूरतो रक्षन्'-ऐसा सभापर्व में प्रयोग पाया है / अतः रत् धातु का ऐसा प्रयोग व्यवहारानुकूल है और लोकभाषा से मेल भी रखता है / 6. प्राहिणोत् / यहाँ 'पुरुषम्' का अध्याहार करना चाहिये / 'विदुर' से "क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः' इस सूत्र से चतुर्थी होगी। भारत के इस न्यास पर विद्वानों को ध्यान देना चाहिये / 'प्राकारयत्' 'प्राहियोत्' का स्थान नहीं ले सकता। 12