________________ [ 171 ] E-*अतिसार के रोगी के लिए भोजन विष है / १०-यह शरारती' लड़का है। इसे 2 मुँह न लगाओ। ११-चतुर लोग दूसरों को गुणों 3 का सराहना से फुलाते हैं और अपना उल्लू साधते हैं / १२-मूर्ख वैद्य न केवल धन को हरता है, प्राणों को भी / १३-इस५ देवता के सामने धरना मारकर बैठ जाता हूँ / निश्चय है अवश्य सिद्धि होगी। १४-*मार्गशीर्ष से लेकर दो दो महीनों की एक-एक ऋतु होती है / १५-जब मैं उसके पास पहुंचा तो मेरा उसने बहुत सत्कार किया६, स्नान -भोजनादि कराया और आराम के लिये बिस्तर कर दिया / १६-मैं एक घण्टे से शय्या में पड़ा करवटें deg ले रहा हूँ, नींद११ नहीं पाती११ / १७-वैद्य लोग बीमारों के सहारे जीते हैं / दूसरे प्राश्रम गृहस्थाश्रम के सहारे जीते हैं / १५-इस छात्र ने अपनी बुद्धि और स्मृति से अपने साथियों को पछाड़१२ दिया है 12 / १६-तब द्वारपाल ने कहा १३-बहुत अच्छा 13, और सिर झुकाकर और बिना मुँह फेरे राजसभा से बाहर जा अपने स्थान पर खड़ा हो गया / २०-लड़ाई में अर्जुन कई बार कर्म के हाथों से बच गया और कर्ण भी अर्जुन के बाणों का निशाना बनते-बनते बच गया। ___ संकेत-१-(सर्वतो दृष्टिं चारयित्वा) रे रे दुष्ट ! क्षुद्र ! पामर, एष ते विनयामि दर्पम् ! २-अहं त्वत्तो वयसा पूर्वोस्मि / किद्भिर्वत्सरैरिति न वेद / ३-धृतराष्ट्रस्य विदिते दुर्योधनादिभिः पाण्डवाः स्वाधिकाराद् वञ्चिताः / ४अद्यश्वीना परीक्षा, त्वं चैवमुदास्से, तत्कथं युज्यते / ५-प्रातःकल्पमिव भाति, तेन वेलेयं यद् गा दुहीमहि। ६-इदं पयोरूपम्, इदं च पयस्पाशमिति कथं वेत्थ ? यहाँ रूपप् प्रशंसा में प्रत्यय है और पाशप् निन्दा में / १७–वैद्या व्याधितेषु जीवन्ति। २०-युध्यमानोऽर्जुनोऽसकृत्कर्णप्रहारादात्मानं कथंचिद्ररक्ष / कर्णोप्यर्जुनबाणानां लक्ष्यतामुपगमिष्यन्नेव स्वं कथंचिज्जुगोप। 1. उल्कापाती बालः / 2-2. माऽस्मिन्प्रीत्या वृतः, मैनं प्रीतिवचनेनाभिमुखी कार्षीः, मैनं मधुरमालपीः / वृतः, यह अट्-रहित वृत् धातु का लुङ म० पु० एक० हैं / 3-3. उत्कलापयन्ति / यहाँ 'गुणस्तुत्या' इत्यादि कहना अनावश्यक है / ४-गोवद्यः। 5--5. अस्यै देवतायै प्रतिशयितो भवामि / 6.-6. समभावयत्, सदकरोत् / 7-7. स्नानभोजनादिकं चान्वभावयन्माम् / 8-8. शय्यामरचयत् / 6-6. एकां होराम् / 10.-10. पार्वे परिवर्तयामि / 11-11. निद्रा नायाति नेत्रे / 12--12. पश्चात्कृताः / 13-13. परमम् इत्युक्त्वा /