________________ [ 172 ] अभ्यास-२५ १-जब पौ फूटी हमने द्वारिका की ओर प्रस्थान किया / 2- यह लोक शूर की बाहों पर ऐसे आधारित है जैसे पुत्र अपने पिता की बाहों पर / ३जब एक धूर्त एक स्त्री की कलाई के भूषण को उतारने लगा तो उस (स्त्री) ने उसका हाथ जोर से पकड़ लिया। ४-जैसे राम पुरुषों में श्रेष्ठ हैं वैसे ही सीता स्त्रियों में / ५-हाँ, बेचारा शद्र सर्दी से पीड़ित है, इसके तन पर एक भी तो वस्त्र नहीं। ६--कल जब हम आपस में पुराने समय की बातें कर रहे थे तो हमें अपने पुराने सुयोग्य शिष्य सोमदत्त' की याद आई। ७-तू बहुत लाल पीला हो रहा है। पर इस प्रकार आवेश में आकर मेरा क्या बिगाड़ेगा? 8-* हे राजश्रेष्ठ ! कर्ण तो पाण्डवों के पासंग भी नहीं हैं / ह-शूरता, निर्भयता, दया, दाक्षिण्य-यह अर्जुन के जन्मसिद्ध गुण हैं। १०-कौना का काँ करता है, और कोयल कू कू / एक को 'कारव' कहते हैं, दूसरे को 'कलरव'। ११-फलों का छिलका उतारकर और छुरी से काटकर अतिथि महाशय की सेवा में धरो। १२-इन बहुत सी पुस्तकों में से कौन सी तुझे भाती है ? जौन सी तुझे / १३-माज कल प्रायः भर्ता भार्या के अधीन देखा जाता है / ऐसे पति को संस्कृत में भार्याटक, भार्याजित, भार्यासोश्रुत-नामों से कहा गया है / १४-कमल प्रातः खिलते हैं और सायं बन्द हो जाते हैं। यह वस्तुस्वभाव है और कुछ नहीं। १५-अपराधी३ को अवसर दिया जाय ताकि वह अपने पाप का प्रायश्चित्त कर आगे के लिए पवित्र जीवन बना सके / तीव्र दण्ड देने से कुछ सिद्ध नहीं होता / १६-गला फाड़-फाड़ कर क्यों चिल्ला रहे हो, तेरा हाथ पांव, तो नहीं टूट गया ? १७-जो दोष उस पर लगाया गया है, वह स्वप्न में भी उसे नहीं कर सकता। १८-इस सिरहाने का गिलाफ मैला हो गया है, इसे बदल दीजिये / १६-कन्या शोक उत्पन्न करती है यह कथन मिथ्या है, वह तो कुछ भी न करती हुई अपनी मुग्धता और मीठी वाणी से माता पिता के दुःखों४ को कम करती है / २०-वह बहुत करके चुप रहता है, न जाने किस चिन्ता 1-1. सोमदत्तमगमन्मनो नः, सोमदत्तं मनसाऽगमाम / 2.-2. फलानि निष्कुष्य / 3--3. अपराद्धस्य क्षणो दीयताम् / 4. दुःखानि कनयति (=कीयांसि करोति)। 5--5. स तूष्णींसारः /