________________ ( 166 ) चरक विमानस्थान (6 / 18) देखो। १७-जैसे""यथा बलवन्तोऽपस्मरन्ति तथाऽबलाः। अभ्यास--२३ १-यह मकान पुराना है और वह परे ज्यादा पुराना' है, पर अधिक नया मालूम पड़ता है। २-प्रातः उठे अथवा कुछ२ रात रहते / सबसे पहले शौच 3 से निवृत्त हो रे बाहर मैदान में जा कुछ देर घूमे अथवा व्यायाम करे / 3- ज्ञानवान् को भी अपने ज्ञान की डोंग नहीं मारनी चाहिये / ४-*समस्त संसार बुद्धिमानों का प्राचार्य है और मूखों का शत्रु / ५–यह राजा तो नहीं, पर राजाओं की सी ठाठ अवश्य रखता है / ६-जिसे खाना पचता नहीं, उसके लिये लङ्घन ही अच्छा है / ७-इस रोग में एक वर्ष पुराना मधु' काम में लाना चाहिये / ८-इस रहस्य को ऐसी जगह न कहना जहाँ पिताजी सुन सके / 8-मेरे मुँह का स्वाद बिगड़ा हआ है, मधुर जल भी फीका मालूम देता है। १०-तुम्हारे मसूढ़ों में से खून निकल रहा है। किसी अच्छे मंजन का उपयोग करो और खाने के पश्चात् नित्य ही दांतों को साफ करो। ११-गर्भिणी को कुएँ के बीच में नहीं देखना चाहिए ऐसा चरक में लिखा है। १२-इसे मुंह पर तमांचा दो और हाथ की पीठ पर मुक्का और गलहत्था देकर कमरे से बाहर कर दो। १३-यदि तू जाना चाहते हो तो जा सकते हो, पर अपने स्थान में दूसरा आदमी देकर जायो / व्यर्थ में हमें व्याकुल मत करो। १४-यह हाथ का कंगन" किसका है ? पहचान देकर इसे ले सकते हो / १५-एक न एक दिन मृत्यु सभी को पानी है, तो भय कैसा ? १६-*वैद्य का व्यवहार तीन प्रकार है-पीड़ितों के प्रति मित्रता व दया, साध्य रोगी के प्रति प्रीति और मरणासन्न प्राणियों के प्रति उपेक्षा / १७-*(जीव) कुछ कर्म अपनी इच्छा से करते हैं और कुछ (पूर्व) कर्म के कारण। १८--चिरायता, दारुहल्दी, हरड़, जंगी हरड़, गिलो-इनकी आयुर्वेद में बड़ी महिमा गाई है। सौंफ का अर्क भी बहुत उपयोगी बतलाया गया। १६-कभी खा कभी न खा, ऐसे जीता है, कभी 1-1. प्रपुराण-वि० / 2-2. उपव्यूषम् / 3--3. कृतावश्यकः / 4-4. समातीतं मधु / 5. दन्तवेष्ट-पुं० / 6. मार्जन-नपुं० / 7-7. परिहस्तः /