________________ ( 168 ) ६-यह महीने का अन्तिम दिन है, अतः जेब खाली दीख पड़ती है। ७-भृगु ने विष्णु की छाती में लात मारी, पर विष्णु ने उससे पूछा-हमारे शरीर की कठोरता से तुम्हारे पावों में चोट तो नहीं आई ? ८-आज एक रात और यहीं ठहरें / मुझे बड़े जोर की थकावट है / 8-* बड़े रोगों की पहले चिकित्सा करे, दूसरों की पीछे / १०-यदि उसके केश और रोम खींचे जाने पर टूट जायें और वेदना न हो तो उसे मरा हुआ समझना चाहिये। ११-सारथि एक क्षण के प्रमत्त हुआ कि घोड़ों ने रथ को 'उलटा दिया / १२–गड्डा चलता हुआ बहुत शब्द कर रहा है, यह तेल चाहता है। १३-जिस प्रकार मलिन दर्पण में कुछ दिखाई नहीं देता, इसी प्रकार अशुद्ध मन में सचाई का आभास नहीं होता / १४-अब सर्दी निकल गई, अब भी गर्म कपड़े पहन रखे हैं / इतना नाजुक शरीर ! १५---यह नौसिखिया वैद्य है३, निदान आदि कुछ नहीं / १६-आप के लिए देहली का जल अनुकूल न पड़ेगा। इसे आप उबाल कर ठंडा करके पीजिये / १७–मिर्गी एक भयानक रोग है / जैसे हृष्ट-पुष्ट लोग इस रोग से ग्रस्त होते हैं वैसे ही दुर्बल भी / १८-आज कल घर में ही टट्टी और नहाने का कमरा होता है। पुराने प्रार्य तो प्रायः शौच के लिये जंगल जाते थे और नदी पर स्नान करते थे। १६-सिर दर्द इतना दुःखद नहीं जितनी हृदय की पीड़ा। संकेत-पायतस्वभावानि दुःखानि / एषां धैर्येण सहनमेव सुखाय / नार्थः परिदेवनया / २-इदानीं किमस्य वत्सस्य वयः ? इदानीमयं षष्ठं वर्षमनुभवति / ६-मासतमोऽयं दिवसः। रिक्ता चार्थभस्त्रेति युज्यते / मासस्य पूरणो मासतमः / 'मास' संख्यावाचक शब्द नहीं, अतः इससे पूरणार्थक डट् प्रत्यय की प्राप्ति नहीं थी / पर 'नित्यं शतादिमासार्धमाससंवत्सराच्च' (5 / 2 / 57) जो डट् को तमट् आगम का विधान करता है-इस (डट् विधि) में ज्ञापक है। ७-भृगुणा विष्णोर्वक्षसि पाष्पिर्दत्तः, विष्णुर्वक्षसि पादेन प्रहृतः / १२-अतिवेलं संक्रीडति (कूजति) शकटः / नूनमयमुपाङ्गमपेक्षते / १४-गतो हेमन्तः / अद्याप्युष्णं वासः परिधत्से / अहो पेलवं शरीरम् / 'उष्णं वासः' की साधुता के निश्चय के लिये 1-1. पर्यस्तः / 2. संक्लिष्ट आदर्श / मलोपहतप्रसादे दर्पणे। 3-3. नवतन्त्रोऽयं भिषक् / 4. सात्म्य-वि० / 5-5. शृतशीताः (आपः) / ६वर्चःस्थानम् / 7. हल्लेखः।