Book Title: Anuvad Kala
Author(s): Charudev Shastri
Publisher: Motilal Banarsidass Pvt Ltd

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Page 218
________________ ( 167 ) रंग बदलता है / आज हिन्दू है तो कल ईसाई और परसों बौद्ध / १८-जांच होते-होते उसका भंडा फूट गया / संकेत-१-अद्य प्रातरेव (प्रग एव) विंशते रूप्यकारणां हानिमें जाता। २व्यायामो हि भेषजं भेषजानाम् / एतत्कृते कश्चिद् व्ययोऽपि नानुभवितव्यो भवति / ३-मुष्टिमेयं तमोऽभूत्, एकोऽपरं नान्वभवत् / (तम'-स्तथा निबिड. मभद्यथैकः सदेशे स्थितमपरं नालोकत)। ५-आयुष्यं-जललोलबिन्दुचपलम२ / तत्र क आश्वासः ? ६-अस्या वार्ताया अन्तादी (प्राद्यन्तौ) नावगच्छामि / -मुखेडस्मै (प्रहस्तं) चपेटां देहि, कर्णपाल्यां च मुष्टिप्रहारं प्रयच्छ, एवमयं शरस्येव ऋजुतां यास्यतीति निश्चितमवेहि / ६-साधु सखे ! साधु, चिरतरं दिल्लीमावसः, जघन्यकृत्यवर्ज च नान्यदशिक्षथाः / १०-साम्ना हि यच्छक्यं न तच्छक्यं प्राभवत्येन (प्रभुतालम्बनेन)। प्रभवतो भावः प्राभवत्यम् / १२-आक्रोशतो मे कण्ठरोघो जातः (रुद्धः कण्ठः, सन्नः कण्ठः, कण्ठः कलुषः, उपादास्त स्वरः) न हि कश्चिच्छणोति माम् / १३-ऋणं न देयम्. अनेन न केवलं धनराशिः तीयते, परं मित्राण्यपि हीयन्ते / १४-श्रीमन् ! किमात्थ क्वासो कौपीनमात्रपरिधानो बालः ? क्व चाहं कुले महति सम्भूतः। १५-ब्रह्मरात्रिरिव दीर्घा त्रियामाऽत्यगात् / १६-परिपन्थिनामनिशमनसमनन्तरं लौहसुषिकः परं क्लैब्यमगमत् / १६परिपन्थिनामनिशमनसमनन्तरं लोहसुषिकः परं क्लैब्यमगमत् (सनहस्तोऽभूत्) / १७-प्रतिसूर्यक इव सोऽनेकरूपः / अभ्यास-२२ १-दुःख लम्बे हुआ करते हैं। इन्हें धीरज धर सहने में ही सुख है। विलाप से कुछ प्रयोजन नहीं। २-इस समय इस बच्चे की क्या अवस्था है ? अब इसे छठा वर्ष जा रहा है। ३-उपमा के सभी भेदों के निरूपण में तो बहुत समय लगेगा। अतः मोटे ढंग से 3 कुछ एक भेद कहे जाते हैं। ४-भगवान् राम ने ऐसा तीखा बाण' फेंका कि अपने समय का माना हा वीर वाली क्षणमात्र में धराशायी हो गया। ५-जो६ श्री को चाहते हैं उन से सरस्वती बिगड़ जाती है / यह सपलियों का स्वभाव है, कुछ नई बात नहीं। 1-1. अन्धकारं तथा नीरन्ध्रमभूत् / अन्धकार पुं० और नपुं० है / 2-2. बुद्बदोपमं पुरुषजीवितम् / 3-3. स्थूलोच्चयेन / 4-4. शुद्धेषुः-पुं० / 5-5. भूमिवर्धनः कृतः / 6-6. ये श्रियमाशासते (भट्टि 5 / 16) / 7-7. तेम्योभ्यसूयति सरस्वती, तेषु दुर्मनायते सरस्वती।

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