________________ ( 165 ) चित्तमुत्पन्न प्रहारं प्रहारं (प्रहृत्य प्रहृत्य) तं क्षुणनीति (प्राणैस्तं विमोचयामीति) / १०-खट्वामधिशयानः सर्वरात्रं पार्वे एव पर्यवीवृतम् (सर्वरात्रमुन्निद्र एव शयनीयेऽलुठम्) / पर्यङ्क निषण्णस्य ममाक्ष्णोः प्रभातमासीत् / १२-नेह स्वार्थसिद्धिमुत्पश्यामः / प्रदेशान्तरं संक्रामामः / १३-अपि त्वयाऽश्वस्य खुरत्राणि बन्धितानि ? अभ्यास-२० १-उसके मुँह न लगना, वह बहुत चलता पुरजा है। २-जब से उसने अकारण मेरा विरोध किया तब से वह मेरी आँखों में अखरने लगा। ३–श्याम के पिता ने अपने पुत्र को बहुत सिर पर चढ़ा रखा है। अब वह न केवल बन्धुत्रों का तिरस्कार हो करता है, पिता के कहने में भी नहीं है / ४-यह जूता बहुत तंग है और दूसरा दिखायो। ५-उस भाग्यहीन ने अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारी। ६-अजी, तुम मुझे क्या समझते हो ? यह तो मेरे बायें हाथ का करतब है। ७-तैमूरलङ्ग ने दिल्ली की ईंट से ईंट बजा दी। ८-ये सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं, यदि पिता कपटी और क्षुद्र है तो पुत्र भी वैसे ही। -यह करतब ऐसा जान पर खेलने का है कि देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं / १०-गया वक्त फिर हाथ आता नहीं। ११-भाई२, परमात्मा ने पांचों उँगलियाँ बराबर नहीं बनाई। संसार में भले लोग भी हैं और बुरे भी / १२-मित्र ! मुझे नींद आ रही है, अब मुझे मत बुलाना / १३-सँवारे हुए बालों से स्त्री-पुरुष की जो शोभा होती है वह दूसरे शृगार से नहीं, वे भी जब घुघराले 3 हों तो क्या ही कहना ? १४-मित्र, दिखावा न दिखाओ, दो चार कौर खा लो। १५-आइये, बैठिये, बहुत समय के बाद आना हुआ, कहिये, सब कुशल तो है ? १६-ईश्वर न करे, यदि तुम फेल हो गये तो क्या तुम अध्ययन जारी रखोगे ? संकेत-१-तेन सह नातिपरिचयः कार्यः, शठो हि सः (कितवोऽसौ)। २-यदा प्रभृति स मामकारणं व्यरुधत् तदा प्रभृति मेऽक्षिगतः समजनि / 1-1. सर्व इमे सजातीयाः (समानप्रसवाः) / 2-2. भद्र (कल्याण, सौम्य)! न हि समे समानशीला भगवता सृष्टाः (न हि समानशीलः स्वायम्भुवः सर्गः)। सन्ति चेहोभये सुजनाश्च दुर्जनाश्च / 3-3. अराला: (कुटिलाः) केशाः, ऊर्मिमन्तः कचाः, कुण्डलिनः केशाः / 4-4. शान्तं पापम् /