________________ ( 163 ) देखो "विषय-प्रवेश" लकार प्रकरण / ३-क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टो रुष्टस्तुष्टः क्षणे क्षणे / ६–अम्बा बालं कुतकूतयति / सोऽट्टहासं हसति, अम्बायाश्चातिमात्रं मोदते मनः / 10 -चिरं विप्रोषितो रुग्णश्चासौ तथा परिवृत्तो यथा परिचेतुं न शक्यः (दुरभिज्ञानः संवृत्तः) / १३-ततः सोऽमुतोऽपक्रमोपायमचिन्तयत् / १४अहं तथोपरंस्यामि यथा त्वमेव दोषभाग भविष्यसि / १६-......"स्वजीवितमविगणय्य (त्यक्तजीविताः, प्राणांस्त्यक्त्वा, प्राणांस्तृणाय मन्यमानाः) निर्भरमयुध्यन्त / यहाँ "त्यक्तजीविताः" और "प्राणांस्त्यक्त्वा" की साधुता के निश्चय के लिये गीता (1 // 33 // ) पढ़ें। अभ्यास-१८ १-मेरी सब आशाओं पर पानी फिर गया' (मेरो सब आशाएँ धूल में मिल गई)। २-कभी वह मेरे बश में आ गया तो अगली पिछली कसर निकाल लूँगा / ३-दूध गरम करते ही फट गया। बासी होगा, अथवा दही की बूंद पड़ गई होगी। ४-तुम्हें इन बातों से क्या ? अपने काम से काम रखो / ५-बस श्रीमान् बहुत हो चुका, अपनी जबान को लगाम दीजिये / ६-तुम सदा मन के लड्डू फोड़ते रहते हो। ७-आज स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है, देश के नेताओं के चित्र धड़ाधड़ बिक रहे हैं। ८-आजकल रुपया पैसा खून पसीना एक करके मिलता है। 6 --तुम तो दूसरे के घर में आग लगाकर तमाशा देखना चाहते हो। १०-जब पाण्डवों ने वारणावत में पहुँच कर लाक्षागृह में प्रवेश किया तो युधिष्ठिर को लाख की गन्ध आई। तब उसने कहादाल में कुछ काला है / ११-आजकल प्रत्येक मनुष्य अपना उल्लू सीधा करना चाहता है, दूसरों के हित की उसे चिन्ता नहीं। १२-दिल के बहलाने को गालिव यह ख्याल अच्छा है। ____ संकेत-१-सर्वा ममाशा हताः / (मोघाः संजाताः) / २–स चेन्मम हस्ते पतिष्यति, तदाऽद्यावधिकृतं (पूर्वतरं च कृतम्) कृत्स्नमपकारजातं निर्यातयिष्यामि (प्रतिकरिष्यामि, विगणयिष्यामि)। ३-सन्तप्तमात्रमेव दुग्धं द्विधाऽभूत् / 5 - अङ्ग ! अलमतिवाचा (कृतमतिप्रसंगेन) नियन्त्रयस्व जिह्वाम् / ६-मनोरथस्तो 1--1. अद्भिः प्रवाहिता इवास्तं गताः सर्वा ममाशाः (रजोऽवकीर्णा इवाऽविकला ममाशाः प्रलीनाः)।